सोचती हूँ उन नरपशुओं की माताओं से मिलूँ
डॉ अमिता तिवारी, वाशिंगटन डी. सी.
आज जब दामिनी चली गई है
सब स्तब्ध हैं
नर पशुओं की दरिंदगी से त्रस्त हैं
हर तरफ उनके लिए मौत की मांग है
ऐसे में मेरी भी एक मांग है
कि एक बार मुझे उन नर पशुओं की माताओं से मिलाया जाए
पूछ पाऊँ उनसे
की कौन से अँधेरे की औलादें हैं वो
किस किस ज़हर से पाले हैं वो?
धमनियों में क्या क्या बहता रहा है
कानों में क्या कौन कहता रहा है ?
दादा , नाना की गोदी भी खेले थे वो
नानी दादी के सुख दुःख भी झेले थे वो ?
किसी राखी के धागे भी बांधे थे कभी
रिश्तों को दिए थे काँधे भी कभी ?
भाई के संग कोई रोटी भी बांटी थी
माता कभी क्या उनको भी डांटी थी?
चाची भाभी दादी नानी बुआ
किसी से कभी था मेल हुआ?
अगर वह सब हुआ, तो यह सब कैसे हो गया
रिश्तों का असर कैसे खो गया
भूल कहाँ कैसे हो गयी
नर की संतान नराधम हो गयी
आदमी की औलादें
और पशुओं को भी पीछे छोड़ दें
एक कोख से निकले कोखी दूजी कोख झंझोड़ दें
अगर वह सब हुआ,तो यह सब कैसे हो गया
रिश्तों का असर कैसे खो गया
यह सब जानना बहुत ज़रूरी है
बेहद ज़रूरी है उन हालातों को समझना
और संजीदगी से खन्खालना
जिसने इन को दरिंदगी सिखाई
हैवानियत की ऐसी पाठशाला पढ़ाई
और अब फांसी लगती ही है तो लग ही जाए
देरी की धुंध में दया न रो जाए
हवालातों पर खूब खूब बात हो
पर हालातों पर भी बात हो ही जाए
ध्रतराष्ट्र की भी तो आँख खुले
गांधारी की आरोपित पट्टिका भी उतर जाए
मिट जाएँ वो राज्सभायें
जहाँ द्रोपदी की लाज न बच पाए
वो नीति मिट जाए राजनीति मिट जाए
मिट जाएँ वो अंधे क़ानून
वो अँधे सिंहासन भी न बचें
मिट जाएँ वो सिरफिरे जनून
कुछ तो अँधियारा छंटे
कुछ तो आये कहीं से प्रकाश
कहीं तो हिले कुछ तो हिले
कही तो बने दामिनी को आस
आज जब सब स्तब्ध हैं
नर पशुओं की दरिंदगी से त्रस्त हैं
हर तरफ उनके लिए मौत की मांग है
ऐसे में मेरी भी एक मांग है
कि एक बार मुझे उनकी माताओं से मिलाया जाए
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