आप से मिलिए
संतराम बजाज
एक बार मैं ने आप को कुछ ऐसे महमानों से मिलाया था जो जब आ जायें तो आप को अपने ही घर में अजनबी बना देते हैं, ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ वाली बात थी, और मैं ने उसे ‘गेस्ट आईटिस’ बीमारी का नाम दिया था|
आज मैं आप से उस से मिलती जुलती बीमारी – ‘मित्र आईटिस’, अर्थात ऐसे मित्र, जिन्हें आप छोड़ना भी नहीं चाहते और रख कर भी खुश नहीं हैं – की बात करने जा रहा हूं| ध्यान रहे, मैं ने नाम बदल दिए हैं, क्योंकि मैं किसी झमेले में फंसना नहीं चाहता | यदि इन में से किसी में आप को अपनी छवि दिखाई पड़े तो उसे केवल अपने दिमाग की कल्पना समझ कर भूल जायें| मेरा उस से कुछ लेना देना नहीं है|
लीजिए सब से पहले मिलते हैं, श्री मोहित जी से – बहुत ही हंसमुख और दिलदार किस्म के सभ्य परुष हैं| जब हंसते हैं तो आप इन की पूरी बत्तीसी गिन सकते हैं, परन्तु फिर भी लोग इन से दूर रहने की कोशिश करते हैं|
क्यों? क्योंकि इन्हें पैसे उधार ले कर वापस करने की आदत नहीं है| अर्थात ’one way traffic’ है|
वैसे छोटी मोटी रकम को वह उधार समझते ही नहीं, जिसे वह आप से निकालने में बड़े निपुण हैं|
जैसे आप को अपनी गाड़ी में लिफ्ट आफर करेंगे और सीधे पेट्रोल स्टेशन पर पेट्रोल लेने के बाद कहेंगे, “भई ज़रा पांच डॉलर देना, कुछ कम पड़ गये हैं”| और पांच डॉलर देने के बाद आप मीटर देखेंगे तो पता चलेगा कि उन्होंने पेट्रोल केवल ६ डॉलर का डलवाया था| यानी ५ आप के और १ उनका|
अब आप ५ डॉलर मांगने से तो रहे | और यदि आप ने ढिटाई से मांग भी लिये तो वह हंसते हंसते गोल कर जायेंगे, “अरे वह तो मैं ने इस लिये नहीं पूछा कि कहीं आप बुरा न मान जायें , क्योंकि दोस्तों में क्या लेन देन?”
अब भला आप इस का क्या जवाब देंगे? आप को ही शरम आने लगेगी कि मांगे ही क्यों|
ऐसे ही एक और मित्र हैं, जिन्हें हम सब ‘M K’ अर्थात ‘मुफ़्त खोरा’ कहते हैं| यह न उधार लेते हैं और न उधार देते हैं| पर इस ताक में रहते है कि कब और कैसे दूसरों से मुफ़्त में चाय नाश्ता कर सकें|
यदि आप लाख नजरें बचा, बाज़ार में कहीं चाय पीते या कुछ चाट पापड़ी खाते उन की नज़र पड़ गये तो आप की शामत आ गई|
“अरे अकेले अकेले ही खाया जा रहा है|” और फिर वह दुकानदार को सीधे ही बोल देंगे, “भैया, बनाना एक प्लेट और”
उन्हें तरीके भी बहुत आते हैं | जब बिल भुगताने का समय आएगा तो वह टायलेट की ओर चल पड़ेंगे, या उन पर खांसी या छींकों का दौरा पड़ जाएगा| या फिर उन का हाथ उन की जेब तक जाने में इतनी slow motion से पहुंचेगा कि कोई दूसरा बिल चुकता कर देगा |
एक बार हम सब ने स्कीम बनाई कि आज उसे ही आगे जाकर बिल देने दो| वह उस्तादों के उस्ताद निकले| काऊंटर पर बड़ी शान से पहुंचे, जेब में हाथ डाला और फिर हवा में खाली हाथ लहराते हुए गुस्से से बोले, “भई! हद हो गई है, पॉकेट मार यहाँ भी आ पहुंचे, हमारा पर्स ही उड़ा लिया”|
अब आप क्या करेंगे? यह तो कह नहीं सकते कि, कि श्रीमान जब पर्स था ही नहीं तो उडाएगा कौन?
लेकिन हमारी वही कमज़ोरी! दुकानदार के सामने शरमसार होने के डर से हम ने बिल चुकाया और दुखी दुखी घर आये|
और तो और , जब आप के घर आयेंगे, तो आते ही उन्हें कोई इम्पोर्टेंट कॉल याद आ जाती है और आप का टेलीफोन | बस फिर इधर उधर की फज़ूल बातें |
चलिए अब कुमार साहिब से भी मिल लीजिए – यह भी हमारे अच्छे मित्रों में गिने जाते हैं|
यह टेक्स एजंट हैं और हिसाब के बड़े पक्के हैं| यहाँ तक कि इन की धर्मपत्नी को भी शोपिंग करने के बाद हर खरीदी चीज़ की receipt दिखानी पड़ती है|
वैसे इन की धर्मपत्नी भी इन से कुछ कम नहीं हैं| घर में बर्तन साफ करने वाली बाई को पाऊडर तक नाप तोल कर देंगी| स्प्रे की बोतल पर निशान लगा कर देंगी कि इस से ज्यादा इस्तेमाल न करे|
आप इन के घर जायें तो काफ़ी समय बातों ही में गुज़ार देंगे, फिर अचानक याद आएगा कि आप को चाय पिलानी है ,परन्तु घर में दूध नहीं है या चाय पत्ती समाप्त है| और क्योंकि आप की कार बाहर खड़ी है इसलिए आप के साथ बैठ कर लेने बाज़ार चल देंगे| जब बाज़ार गये ही हैं तो क्यों न कुछ और सामान ख़रीद लिया जाये, यानी हफ्ते भर की ग्रासरी ! एक दो घंटे के बाद जब आप उन के घर वापस पहुंचे तो आप का चाय पीने का मूड ही शायद न हो और अपने घर जाने की जल्दी|
इन के और भी कई अधूरे काम पड़े होते हैं, जिन्हें पूरा करने में आप की सहायता की आवश्यकता होती है – जैसे दरवाज़े की घंटी का सविच टूटा है, बाथरूम का नल टपक रहा है या किचन का बल्ब फ्यूज़ है आदि आदि|
आप पूछेंगे, कि आप उन के घर जाते ही क्यों हैं?
तो बात यह है कि यह बातें बड़ी दिलचस्प करते हैं | खास तौर पर Politics पर इन की तकड़ी पकड़ है, और बड़े बड़े घोटालों की सनसनी खेज़ जानकारी सुनने में मज़ा आता है|
(कुछ शेष मित्रों से फिर कभी मिलवाऊँगा … आज बस इतना ही )
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