नाई की दुकान
संतराम बजाज
जिन लोगों ने भारत में काफ़ी समय बिताया है, उन्हें भली भाँती मालूम है कि नाई की दुकान क्या महत्त्व रखती है|
मैं आजकल की बड़ी बड़ी ‘हेयर सैलून्ज़’ या ‘ब्यूटी पार्लर्ज़’ की बात नहीं कर रहा हूँ, जहां दर्जनों गोल गोल घूमने वाली कुर्सियां, दीवारों पर बड़े बड़े शीशे और बाल काटने की दर्जनों कैंचियां और ‘कलिप्पेर्ज़ होते हैं| तरह तरह के शैम्पू, पाऊडर और मसाज करने के लिये खुशबूदार तेल और ‘सैंट’ |
बाल काटने वाले नाई नहीं ‘हेयर स्टाईलिस्ट’ या ‘हेयरड्रेसर’ कहलाते हैं|
मैं उन दिनों की बात कर रहा हूँ जब केवल आदमी ही बाल कटवाया करते थे|
मुझे अभी भी अपने गाँव में मांगे राम नाई की दुकान अच्छी तरह से याद है| उसी से सब हजामत कराने , मेरा मतलब है ,बाल कटवाने जाते थे| बड़े बूढ़े अपनी दाढ़ी भी उसी से बनवाते थे |
हाँ कुछ पैसे वाले ‘बड़े लोग’ उसे अपने घर बुला कर दाढ़ी बनवाते थे|
मांगेराम के बाप राम आसरे की तो दुकान ही नहीं थी, वह तो अपने छोटी सी संदूकची लिये लोगों के घरों में ही अपनी चलती फिरती दुकान लेकर पहुंच जाता था, या गली की नुक्कड़ पर ही जमीन पर टाट बिछा कर अपना धंधा चलाता था|
मांगे राम ने एक छोटा सा कमरा ले दुकान खोल रखी थी| उस में एक लकड़ी की कुर्सी, एक आईना दीवार पर, दो एक कैंची, दो उस्तरे ,एक चमड़े का पट्टा और एक दाढ़ी बनाने का साबुन और कुछ फिटकरी, जो वह दाढ़ी बनाने के बाद चेहरे पर रगड़ देता था| हाथ और पाँव के नाख़ून काटे के लिये एक लम्बा तेजधार आला सा भी था|
दुकान के बाहर एक चारपाई और एक लकड़ी का बैंच पड़ा रहता था जिस पर लोग अपनी बारी के इंतज़ार में बैठते थे| एक हिन्दी का अखबार भी होता था, जिसे कई लोग एक एक पन्ना ले कर पढ़ते थे| वैसे कुछ लोग तो केवल समाचार पत्र पढ़ने ही आते थे| इस तरह से नाई की दुकान एक लायब्रेरी और मीटिंग प्लेस का काम करती थी| नाई की दुकान की कल्चर ही अलग होती थी लोग वहाँ केवल बाल कटवाने के लिये ही नहीं जाते थे| गप्पें हांकने और इधर उधर की खबरें लेने से सीरीस बातों पर भी विचार-विमर्श किया जाता था|
दुनिया का ऐसा कौन सा मसला है जिस का हल आप को वहाँ नहीं मिलता | समस्या कितनी भी बड़ी हो, हल चुटकियों में निकाल देते हैं वहाँ के एक्सपर्ट |
क्रिकेट और फ़िल्मी बातें भी होती थीं, परन्तु ज्यादातर राजनीति पर काफ़ी गर्मागर्मी होती रहती थी|
चाईना और पाकिस्तान को कैसे नुकेल डालनी हैं, या अमेरिका और रूस में से किस के साथ दोस्ती रखनी चाहिए, इन सब बातों पर | महात्मा गांधी, नेहरू, पटेल की बातें होती थीं, चीन के साथ भारत युद्ध और पाकिस्तान के साथ लडाई के चर्चे |
“नेहरू ने पटेल की बात मान ली होती तो कश्मीर का मसला ही न होता”
“अजी नेहरू से ज्यादा तो उस की बेटी इन्द्रा बहादुर निकली, बंगलादेश बना पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए|”
“लेकिन कश्मीर का मामला तो वह भी हल न कर सकी|”
“उस से पहले लाल बहादर शास्त्री जी को भी तो चांस मिला था परन्तु शास्त्री जी कुछ ज़्यादा ही शरीफ निकले, नहीं तो १९६५ की लड़ाई में जीते हुए इलाके लौटाने के बदले कश्मीर का वह इलाका ले सकते थे, जो पाकिस्तान के कब्जे में है |”
“इसी सदमे ने तो उन की जान ले ली”
“ नहीं साहब , उन्हें ज़हर दिया गया था. बहुत बड़ी साज़िश थी”
…..समय के साथ सब कुछ बदलता जाता है |
पर मैं आज भी मांगेराम नाई, की आवाज़ साफ़ सुन रहा हूँ ,
“यह मोदी बड़ा शेर दिल है, देखो नवाज़ शरीफ को जन्मदिन की बधाई देने लाहौर पहुंच गया|”
“मैं तो कहूँगा, महां बेफ्कूफी की, खाह्मखाह पंगे वाली बात थी | यदि कुछ हो जाता तो?”, हरया सब्जी वाला बोला | और फिर नवाज़ शरीफ के हाथ में कुछ नहीं, वहाँ फ़ौज का ही हुक्म चलता है|
“ अरे, हो कैसे जाता, पाकिस्तान की ईंट से ईंट नहीं बजा देते|”
“वह तो बाद की बात है, वैसे मोदी जी को अब विदेशों में घूमना बन्द कर घर की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए, नहीं तो मैं कहे देता हूँ, अगले इलेक्शन में बिहार और दिल्ली वाली हालत हो जाये गी|”
“हाँ, यह तो है, देखो दालें २००रूपये किलो हो गई हैं, और वे हैं कि दुनिया घूमते फिरते हैं |”
“अरे, आप भी अजीब बात करते हैं, मोदी की विदेश यात्रा से दालों का क्या सम्बन्ध ? वे कोई दालें साथ थोड़ा ही ले जाते हैं ” भाजपा समर्थक लाला मुक्न्दी लाल ने अपनी सलाह दी| “और फिर विदेश जा जा कर तो मोदी ने जापान से बुलेट ट्रेन, रूस से हेलीकोप्टर और आस्ट्रेलिया से यूरेनियम के समझौते किये हैं|”
“और हाँ,अमेरिका के प्रेज़ीडेंट ओबामा के साथ तो ख़ास मैत्री बना ली है, उसे उस के पहले नाम ‘बराक’ से बुलाते हैं |”
“मैं तो कहता हूँ, अमेरिका से ज्यादा दोस्ती का कोई फायदा नहीं, क्योंकि आजतक का उन का रिकार्ड है कि जिस जिस से दोस्ती की अपने मतलब के लिये की और बाद में बीच मंझधार छोड़ जाते हैं|”
“भूल गये, १९७१ में भारत और पाकिस्तान की लड़ाई के समय उन्होंने अपना समुद्री बेड़ा भारत के विरुद्ध में भेजा था, वह तो शुक्र करो रूस का, जिन्हों ने उस के जवाब में अपना समुद्री बेड़ा भेज कर उन्हें रूकने पर मजबूर कर दिया था|”
“और तो और, यही वह मोदी है जिसे अमेरिका ने अपने देश आने का ‘वीज़ा’ तक की मनाही कर दी थी|
“बस यही तो कमाल कर रहा है मोदी ,अब रूस और अमेरिका दोनों ही उस की तारीफें कर रहे हैं|
…. तो क्या मेरी तरह आप को भी नाई की वह दुकान याद आती है?” वैसे बड़े बड़े शहरों में तो आजकल भी फुटपाथों पर ऐसे कई ’बारबर सैलून’ अब भी मिल जायेंगे| कुछ भी हो भारत के कुछ हिस्सों में तो ऐसी नाई की दुकानें पराने खंडहरों की तरह दिखती रहेंगी|
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