हम गधे ही भले !
संतराम बजाज
कुछ समय पहले बॉलीवुड के महानायक ‘बिग बी’ अर्थात अमिताभ बच्चन ने गुजरात सरकार के विज्ञापनों द्वारा हमें मशहूर करने की कोशिश की थी| हालांकि वे कुछ VIP गधों के बारे में था, जो आम जगहों पर नहीं पाये जाते, इसलिए हमारे जैसे आम गधों को कोई भी घास डालने नहीं आया|
भला हो उत्तरप्रदेश के सीएम, अखिलेश यादव का कि हम सुर्खियों में आ गये, नहीं तो गधे बेचारों को कौन पूछता था| हां यह बात और है कि हमारी आड़ में उन का निशाना मोदी जी थे, जिन्होंने हमारे हक में कुछ अच्छे डायलॉग बोल जवाबी हमला बोला| हमें थोड़ा गर्व तो महसूस हुआ कि चलो कोई तो हमारी कद्र पहचानता है|
अखिलेश भैया को हमारी याद आती रहती है | इस से पहले भी वे हमारा वर्णन कर चुके हैं| २०१३ में जब वे फ्री में लैपटॉप दे रहे थे, तो उन्हों ने मज़ाक मज़ाक में मशहूर लेखक कृष्णचन्द्र की लिखी पुस्तक ‘एक गधे की आत्म कथा’ जिसमें कृष्णचन्द्र ने बहुत सुंदर ढंग से भारतीय लोकतंत्र पर व्यंग के बाण छोड़े थे, सांसदों को देने की बात कही थी|
अब तो राहुल बाबा भी उन के साथ आ मिले हैं, और कह रहे हैं कि यूपी को यह साथ पसंद है| -एक से दो भले- लोग चाहे उन पर हंस रहे हों पर हमारी डिमांड बढ़ सकती है|
इस में कोई संदेह नहीं है कि चुनावों में जनता का असली मुद्दों की ओर से ध्यान हटाने के लिये, हमारा सहारा लिया गया है | हमें इस में कोई आपत्ति नहीं है, हम तो हमेशा से बड़ी बड़ी जिम्मेवारियां का बोझा उठाते आये हैं| लेकिन थोड़ा दुःख लगता है जब हर ऐरा गैरा, नथू खैरा लठ ले कर हमारे पीछे पड़ गया है|
अब देखा जाये तो घोड़े भी तो हमारे ही परिवार के हैं, पर उन्हें इतनी इज्ज़त दी जाती है| शादी के समय, दूल्हे को उस की सवारी कराई जाती है, जबकि किसी ने बुरा काम किया हो, तो उस के गले में जूतों का हार डाल, उस का मुंह काला कर हम पर बिठा, सारे नगर में जलूस निकाला जाता है| उस व्यक्ति से ज़्यादा तो सजा हमें दी जाती जबकि हमारा उस से कोई लेना देना नहीं है| यह भेद भाव की आदत आदमी की फितरत बन चुकी है– पैसे और मतलब के लिये कुछ भी करेगा| यहाँ तक कि ज़रूरत पड़ने पर, वह कहते हैं ना. “गधे को भी बाप” बना लेता है| और कई बार इतना गिर जाता है कि बाप को भी गधा समझने लगता है| इंसानों के भेस में गधों की भरमार है आज कल, देख कर शरम आने लगती है|
हम असली वाले गधे, खूब मेहनत करते हैं, थोड़ी बहुत घास खा कर और ठंडा पानी पी कर खुश हो जाते हैं, फिर भी लोग हमें बुरा भला कहते रहते हैं| पहले धोबी और कुम्हार हमारे ऊपर बहुत निर्भर होते थे, लेकिन अब उन बेचारों के धंधे मशीनों ने चौपट कर दिए हैं तो हमारी ज़रूरत भी कम पड़ने लगी है |
अमेरिका सब से अच्छा देश है, सुना है वहाँ हमारी बड़ी इज्ज़त है| Democrats पार्टी ने हमें अपना चुनावी चिन्ह का दर्जा दे रखा है और हमें दूसरी पार्टी Republican के हाथी से टक्कर दिलाते हैं| दुर्भाग्यवश इस वर्ष हमें हाथी ने पछाड़ दिया लेकिन तसल्ली की बात यह है कि जीतने वाले को हमारे ही खानदान से जोड़ा जा रहा है|
कोई थोड़ा Stubborn यानी अड़ियल या ज़िद्दी हो तो गधा, कोई अनाड़ी हो तो गधा परन्तु यदि कोई गधे की तरह शरीफ और स्वामिभक्त हो तो उसे गधा नहीं मानते|
वैसे, आदमी की इस अभद्र भाषा के हम अकेले ही पात्र नहीं हैं– कई और जानवर भी हैं ,जैसे कुत्ता,उल्लू, सूअर ,नाली का कीड़ा आदि | बेचारा कुत्ता तो कई एक तिरस्कारपूर्ण शब्दों की लपेट में आ जाता है, हालांकि आदमी इसे अपने घना मित्र भी कहता है|
“बसंती! इन कुत्तों के आगे मत नाचना”, या “कमीने कुत्ते , मैं तेरा खून पी जाऊंगा”, आप ने अक्सर फिल्मों में सुना होगा|
वैसे तो मेहनत करने वाले इंसान को भी ‘गधे की तरह काम करता है’,आप तारीफ़ के तौर पर ही कहते हैं,लेकिन गधे की सोच आप लोगों को नहीं पचती| रावण के कुकर्मों का कारण भी उस के ‘गधे का सिर’ पर मढ़ देते हैं| यह भला कहाँ का इंसाफ है?
वैसे हम किसी को कुछ नहीं कहते,केवल ढेंचू ढेंचू की आवाज़ कर काम चला लेते हैं, परन्तु यदि कोई ज्यादा तंग करे, तो वह दुलत्ती लगाएंगे कि उम्र भर याद रहेगी|
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