मोदी – अभियानों के ‘साईड इफ़ेक्ट’
संतराम बजाज
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी न जाने कहाँ कहाँ से नई नई स्कीमें ढूंढ के लाते हैं ? इस में कोई संदेह नहीं है कि वे भारतवासियों का भला चाहते हैं, परन्तु उन स्कीमों के side effects क्या हो सकते हैं, उन की ओर उनका ध्यान नहीं गया शायद| भले ही उन के हिसाब से इस से भारत का कल्याण होगा, परन्तु सदियों पुरानी आदतें एकदम क्यों और कैसे बदल दें?
इतने अभियान चला दिए, जैसे ‘स्वच्छ भारत, प्रधान मंत्री आवास योजना, डिजिटल इंडिया, गंगा की सफाई, गर्भवती महिला सब्सिडी’, बैंकों में खाते और सब से बड़ी ‘नोट बंदी’, आदिआदि …. केवल सारे नाम लिखने से ही किताब भर जाए I कुछ एक उदाहरण लेते हैं|
‘स्वच्छ भारत’ अभियान ने, भारतीयों के जीवन में काफी उथल पुथल मचा दी है| सदियों से चले आ रहे रीति रिवाज और कार्य प्रणालियाँ उस की चपेट में आ गये हैं|
क्या आज़ादी थी! घर में झाडू मार कूड़ा बाहर गली में फैंक दिया| सूअर, कुत्ते, गाय आदि आकर कुछ खा लेते, बाक़ी का चील कव्वों के काम | और फिर मच्छर मखी उस पर कब्जा कर लेते| और तो और, कुछ गरीब लोग उस कूड़े के ढेर से कुछ न कुछ ढूँढ कर recycle कर, चार पैसे कमा लेते थे|
यदि आप ऊपर की मंजिल में रहते हैं, तो सीधा खिड़की खोल नीचे गली में फैंक दिया| क्या निशाने बाज़ी होती थी, हाँ कभी निशाना चूक जाने पर राह चलते के सिर पर पड़ गया तो एक आधी गाली, सुन लेते थे|
केला खाया और छिलका सीधा गली में या सड़क पर | क्या मज़ा आता था, भले ही कोई उस पर से फिसल जाए – गिरने वाले को आँखें खुली रख सड़क पर देख कर चलना चाहिए ना |
अब कहते हैं कि कूड़ा कर्कट गली में मत फेंको, इसे ढक कर डिब्बे में रखो और ठीक तरह से सफाई कर्मचारी के हवाले करो | पहले भी तो सफाई कर्मचारी आते थे, गली के मोड़ पर एक बड़ा सा ढेर बना देते थे और कई कई दिन वहीं पड़ा रहता था| सुविधा कितनी थी| अब सब का काम बढ़ा दिया और साथ में बेचारे आवारा कुत्तों और पशुओं आदि का राशन पानी बंद करा दिया!
अच्छा, आप बताईये, जब आप सड़क के किनारे खड़े हो कर चाट खाते थे और साथ से कार या बस की उड़ाई मिट्टी उस में मिल जाती थी, तो आप ने उस पर आपत्ति उठाई कभी ? क़ुदरती immunity मिल जाती है, ऐसे | और फिर खाने के बाद पत्ता वही नाली में फेंक चल देते थे|
अब मोदी जी के एक चेले या शायद गुरु कहना उचित होगा (क्योंकि वे एक मठ के गुरु हैं), योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री बनते ही कई एलान कर दिए |
कहते हैं की मोदी जी के बताये हुए आदर्शों और विचारों पर चलेंगे |
जरा सोचिये, दफ्तर में बैठे , मुंह में रखे पान या तम्बाकू की पुड़िया का स्वाद ले रहे हैं और, पीक की पिचकारी, जिधर दिल आया चला दी | कितना आराम था !
लेकिन योगी जी से यह देखा नहीं गया और आफिस में पान और तम्बाकू बंद कर दिया| अजीब बात है ! जब काम दफ्तर में कर रहे हैं तो क्या पान खाने घर जाएँ? थोड़े बहुत दीवारें या फर्श लाल हो गये तो क्या आफत आ गई? हर दीवाली पर सफेदी हो ही जाती है|
पान खाने तक की बात होती तो, जैसे तैसे काम चला लेते, लेकिन
सड़कों में पड़े गड्ढे भरवाएंगे! क्या मति मारी गई है?
लोगों के फिट रहने का एक फ्री साधन – जो पहली सरकार ने दे रखा था – समाप्त हो जाएगा| जब गड्ढे में पाँव पड़ता है, सारा शरीर सतर्क हो जाता है – आँखें पूरी तरह से खुल जाती है, और दिमाग अलर्ट हो पावों को कंट्रोल करता है| कभी ऊपर, कहीं नीचे, हाथ भी पूरी बैलेंसिंग करते हैं; किसी योग गुरु की जरूरत नहीं रहती | सब मुफ्त में, यानी ‘हींग लगे न फटकरी और रंग चोखा’ वाली बात ! मैं मानता हूँ, हो सकता है कि कुछ एक लोगों की गिरने से टांग वगैरा टूट जाए या सिर पर चोट आ जाए, पर इन चंद लोगों की खातिर, शेष सब का स्वास्थ सुधारने के साधन को भला क्यों बंद किया जाए| ये लोग भी बाबा रामदेव की ‘पतंजलि’ की बनाई औषधियाँ लेकर भले चंगे हो कर फिर से ऐसी सड़कों का आनंद ले सकते हैं|
अब तो गाँव में रह कर गाँव की खुली हवा का मजा भी नहीं ले सकते| सुबह उठते थे, हाथ में पानी का लोटा ले, घर से बाहर खुले खेतों में ताज़ा हवा खाते हुए, सैर करते और शौच आदि से निपट कर, नीम या कीकर के वृक्ष की टहनी तोड़, दांतों को साफ़ करते थे |
दो एक लोग इकठे जाते बातें करते हुए, एक झाडी के एक तरफ और दूसरा, दूसरी ओर बैठ, बातों का सिलसिला जारी रखते, जैसे चौधरी और मास्टर |
“मास्टर जी! यह मोदी जी तो गाँव को शहर बनाने में लग गये, अब कहते है कि शौचालय भी घर के अंदर बना लो| भला बदबू से नाक नहीं फट जाएगा?”
“नहीं चौधरी, सरकार ठीक ही सोच रही है, क्योंकि समाज में ऐसे बुरे लोग आ गये हैं, जिन के कुकर्मों से बहु -बेटियों का ऐसे खुले में जाना सुरक्षित नहीं है| मैं ने सरपंच से बात कर के स्कूल में शौचालय बनवाना शुरू भी करवा दिया है | अब तो दुनिया के सब से धनी और दानी व्यक्ति ‘बिल गेटस’ ने मोदी जी की इस काम के लिए जम कर प्रशंसा की है |”
“यह बात तो आप ने ठीक कही और अच्छा किया | बच्चियों को बड़ी असुविधा होती थी| पर यह जो राजा और प्रजा का भेद ही खत्म करने पर तुले हुए हैं मोदी, बात पचती नहीं | अब राजा, राजा होता है और प्रजा, प्रजा| कांग्रेस ने अंग्रेजों की बनाई हुई प्रथाओं को बनाए रखा |
मोदी जी उन के किये किराए पर पानी फेर रहे हैं| उस कल्चर को ही समाप्त कर रहे है| सब VIP और VVIP की कारों की लाल बत्तियां तक उतरवा दीं| भला ऐसे कैसे चलेगा?”
“इन लोगों ने देश के लिए किया ही क्या है? ये गुलामी की निशानियाँ जितनी जल्द हो मिट जानी चाहियें, नहीं तो भारत पीछे रह जाएगा| काफी लूट चुके हैं ये नेता, अपने परिवार के इलावा उन्हें और किसी का भला करना आता ही नहीं| अपने आप को सुपर राजा समझने लगते हैं|
“एक बात तो है मास्टर, मोदी की नोट बंदी, तुम्हारे डंडे की तरह है, जो भले के लिए चलता है और हम अब भी अपने मास्टर के डंडे याद करते हैं तो हमें उस समय तकलीफ तो हुई थी याद है पर कोइ नुक्सान तो न हुआ था| नोट बंदी से कुछ धंधों पर तत्काल बुरा असर तो पड़ा है पर अंत में फायदा ही होगा|”
“तुम्हारा कहने का मतलब है की सारे side effects बुरे नहीं होते|”
“हां, यही बात है| एक और जो मोदी ने ‘बेटी बचाओ’ अभियान चलाया है, भई! बड़े पुन्य का काम किया है | यह ’भ्रूण हत्या’ तो देश के माथे पर बहुत बड़ा कलंक है|”
“और यह जो गर्भवती महिला योजना चलाई है, उस के बारे में क्या विचार है?”
“भई मास्टर, गरीब लोगों को ६००० रूपये मिल जाएं तो कम से कम बच्चे की देखभाल तो ठीक हो सकेगी| पर एक साईड इफेक्ट तो हो सकता है, आबादी बढ़ जायेगी |”
“अरे, नहीं ऐसा कोई खतरा नहीं, केवल दो बच्चों तक ही यह सब्सिडी मिलेगी|”
मास्टर और चौधरी के संवाद यही खत्म, शेष फिर कभी|
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