बही खाते … नए या पुराने
संतराम बजाज
दिवाली और बहीखातों की बात चली तो नीना जी (सम्पादिका The Indian Down Under) ने एक पिटारा सा खोल दिया|
हम तो साहूकारों और बनिया लोगों की बात कर रहे थे | उन बहीखातों की जो लाल रंग की मोटी सी पोथी की तरह कई पडतों या तहों में लम्बी सी किताब की शक्ल में होते हैं| जिस में दुकानदार लोग अपना सारा हिसाब किताब रखते हैं| दिवाली पर एक नया बहीखाता ले, उस की पूजा कर नये वर्ष का हिसाब उस में लिखते हैं| वे कामना करते हैं की नया वर्ष उन के लिए लाभ ले कर आये|
(आज कल कंप्यूटर को भी लोग पूजने लगे हैं!)
इस का यह मतलब नहीं है की पुराने हिसाब को वे भूल जाएँ, पर उस को ध्यान में रख नये बहीखाते को आगे चलायें| (वैसे जब, किसी व्यापारी का काम मंदा पड़ जाता है तो बार बार पुराने बहीखातों को खोल खोल कर बहुत देखता है)
दिवाली पर हम घरों की सफाई कर, कूड़ा- करकट बाहर फैंक कर घरों की सफेदी, रंग पोताई करवाते हैं, इसी तरह यदि हम अपने व्यवहार यानी अपने कर्मों का हिसाब करें और दिवाली पर सोचें कि हम में क्या त्रुटियाँ हैं और हमारे कारण किस को दुःख हुआ है और हम उस खाते को बंद कर नया खाता खोलें कि जिस में उन कमियों को सुधार सकें तो वास्तव में हम दिवाली महत्त्व समझ रहे होंगे|
अपने निजी रिश्तों में, जैसे सास-बहु के झगड़े, पति पत्नी के झगडे या परिवारों के झगड़े – ये सब यदि नये सिरे से, यानि नये बही-खातों की तरह हों तो depression की समस्या कम हो जायेगी|
परन्तु यह कहना आसान है, करना मुश्किल है| ताली एक हाथ से तो नहीं बजती, इसलिए जब तक दोनों पक्ष एक साथ न बैठें, शायद उन का नया बहीखाता न खुल सके|
बहीखाते को ‘चिट्ठा’ भी कहते हैं, जो हमारे भारत देश के उन पाखंडी बाबाओं के खुल रहे हैं | बाबा राम रहीम से पहले आसा राम, राम अवतार – पता नहीं इन जैसे और कितने बाबा अपने ‘कच्चे चिट्ठे’ लिए घूमते हैं? क्या इन के ये सब पुराने खाते बंद करने चाहियें या उन्हें खोल खोल कर, उन पर कुछ कार्रवाई करनी चाहिए?
बात पुराने खातों को बंद कर नये खाते खोलने की हो रही थी|
शायद सबसे बड़ी समस्या है तो ये बड़े बड़े देश, जैसे अमेरिका के प्रधान ट्रम्प हर बात में धौंस ज़माने की बात करते हैं और डंडे से काम लेना चाहते हैं, शायद उन्हें उन का आत्म सम्मान (ego) ऐसा करने के लिए उकसा रहा है या उन का राजनीति में कोई तजुर्बा न होने के कारण, वे अपनी भाषा पर कंट्रोल नहीं कर पाते| उन को टक्कर देने के लिए उधर से किम-जुंग भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे और अमेरिका को तबाह-बर्बाद करने की बातें कर रहे हैं| आजकल की ऐटमी लड़ाई में केवल ये दो देश ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया लपेट में आयेगी और विनाश ही विनाश होगा|
यदि अमेरिका और North Korea, पुरानी बातें भूल कर प्रेमपूर्वक कुछ निर्णय लें ताकि संसार में शांति बनी रहे |
अब भारत और पाकिस्तान की बात करें तो इन का खाता भी नए सिरे से खुलना चाहिए ताकि ये इतने करोड़ों रूपये जो अपने डिफेंस पर लगा रहे हैं और खुद भी दुखी हो रहे हैं और दोनों देशों की जनता को भी बहुत परेशान कर रहे हैं, अगर कुछ करें और लड़ाई झगड़े को पीछे छोड़ कश्मीर के झगड़े को बैठकर सुलझा लें, तो दोनों देशों की जनता खुशी खुशी रह सकती है|
ये खाते बहुत पुराने हैं उन खातों को जला देना चाहिए, नए सिरे से नया खाता खोल कर नई जनरेशन को इस ज़हर से बचा लेना चाहिए|
यदि अरब देशों की ओर देखें तो, चारों ओर अशांति ही अशांति है| इजराईल से तो मानते है कि इन की पुरानी दुश्मनी है, पर वे आपस में भी मिल बैठ नहीं सकते| पड़ोसी पड़ोसी का गला काटने पर तुला हुआ है, लोग घर छोड़ शरणार्थी बने इधर उधर भटकते फिरते हैं |
तो क्यों नहीं ये पुराने खातों को बंद कर नये प्रेम और भाई चारे के खाते खोलते|
नीना जी ने जापान में हिरोशिमा की मिसाल दी है जहाँ हज़ारों लोग दूसरे विश्व युद्ध में मारे गए क्यों कि अमरीका ने एक बहुत बड़ा एटम बम फेंका था| लेकन उन लोगों की इतनी क्षति होने पर भी उन्हों ने नया बहीखाता खोला है और वह है शान्ति का | जापान जो अमेरिका का नम्बर एक दुश्मन बन गया था दूसरे महायुद्ध में, अब उनका सहयोगी है| ऐसे ही और भी मसले हैं – जर्मनी जिस ने दोनों विश्व युद्ध शुरू किये, अब अमेरिका का सहयोगी है|
तो पुराने बहीखाते बंद कर के, ऐसे नए बही खाते जिन से लोगों की भलाई हो सकती है, खुलने चाहिए कि नहीं?
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