दिल ही तो है ! …
संतराम बजाज
दिल क्या है ?
इस का उत्तर इस बात पर निर्भर करता है की आप प्रश्न किस से कर रहे हैं|
एक डॉक्टर या वैज्ञानिक से या फिर एक प्रेमी (आशिक़) से या किसी शायर और कवि से|
पहली category के लोग तो इसे एक मांस का लोथड़ा, जो एक पंप की तरह काम करता है और हमारे शरीर में रक्त (लहू) को नाड़ियों में भेजता है| एक ओर से फेफड़ों में खून भेजता है, जहाँ उसे आक्सीज़न (Oxygen) मिलती है और फिर दिल यह खून दूसरे रास्ते से शरीर में भेजता है| और यह अपना कर्तव्य बिना रुके, दिन रात करता रहता है और जब यह कहीं धड़कना बंद कर दे तो यह जीता जागता प्राणी इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए चल देता है| इस के बारे में कुछ और, बाद में….
अब चलते हैं दुसरी किस्म के लोगों की ओर|
कुछ तो आशिक़ लोग खुद ही बोलते हैं, पर आम तौर पर इन्होंने यह नेक काम शायर लोगों को दे रखा है, जो शब्दों के हार पिरोने में बड़े माहर होते हैं|
इन शायर लोगों ने दिल की वह हालत कर दी है कि पूछिए मत| इस पर तो कई गरंथ लिखे जा सकते हैं|
ग़ालिब हो या गुलज़ार, दिल के बिना कोई बात पूरी नहीं होती|
“दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है, आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है,” – ग़ालिब
“बीड़ी सुलगा ले पीया, जिगर मा बड़ी आग है,” – गुलज़ार
शायरों के अनुसार दिल केवल अपने आप धड़कता ही नहीं, बल्कि ‘माशूक़ा’ के देखने मात्र से भी ‘कुछ कुछ होता है’|
“यूं दिल के धड़कने का कुछ तो है सबब आखिर,
दर्द ने करवट ली या तुम ने इधर देखा”
फ़िल्मी शायर तो आशिक़ों का दिल हथेली पर रख उन्हें अपनी महबूबा के पीछे भागने पर मजबूर कर देते हैं|
“दिल तड़प तड़प के कह रहा है, या दिल धड़क धड़क के दे रहा है यह सदा”
कई एक की नज़र में,‘दिल दिया दर्द लिया’, क्या अदला बदली है! यानी दिल न हुआ सौदे बाज़ी की करंसी हो गई|
दिल आहें भरता है, दिल करवटें लेता है, दिल किसी दूसरे का हो जाता है| दिल जलता भी है, कभी किसी की इर्षा में तो कभी किसी से ठुकराये जाने पर|
दिल पागल भी हो जाता है, या बच्चा बन जाता है|
दिल किसी हसीना को देख कर मचलता है, आ जाता है या फिसलता है – बात तो एक ही है न! चंचल जो हुआ|
दिल ही तो है! “काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं,” बस दिल काला नहीं होना चाहिए, आशिक काला हो या गोरा, कोई बात नहीं|
और तो और, दिल टूटता भी है और उस के हज़ार टुकड़े हो जाते हैं, और फिर “कोई यहाँ गिरा, कोई वहां गिरा”
शायरों में भी मतभेद बहुत है : कोई कहता है दिल एक शीशा है तो दूसरा उसे ‘संगदिल’ आर्थात पत्थर का कह डालता है|
“शीशा-ए-दिल इतना ना उच्छालो
ये कही टूट जाएगा, ये कही फूट जाएगा”
दाग़ देहलवी के शब्दों में,
“तुम्हारा दिल मेरे दिल के बराबर हो नहीं सकता,
वह शीशा हो नहीं सकता, यह पत्थर हो नहीं सकता”
“कोई सोने के दिल वाला, कोई चांदी के दिल वाला”
यानी दिल पत्थर और शीशे के इलावा कुछ और भी हो सकता है|
साहिर लुध्यानवी ने क्या खूब कहा, कि “कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है”, अर्थात दिमाग़ की तरह दिल सोचने का काम भी करता है| ख्य्यालो और विचारों के साथ भावनाएं, अच्छी बात है!
वैसे आजकल के मनोवैज्ञानिक भी अब कुछ हद तक मानने लगे हैं कि दिल एक मांस का लोथड़ा और पम्प ही नहीं है बल्कि हमारी भावनाओं का केंद्र है और यह दिमाग के साथ communicate कर उसे दुसरे अंगों को आदेश देने के लिए बाध्य कर देता है| जैसे आँख ने किसी प्रिय मित्र को मृतक देखा तो मन यानी दिल एकदम दुखी हो कर मस्तिश्क (ब्रेन) को संदेश देता है कि वह दुखी है, जो झट से आँखों को आंसुओं से भर उन्हें रोने पर मजबूर कर देता है| यह क्रिया इतनी जल्दी से होती है कि हमें पता ही नहीं चलता|
भारत के योगशास्त्री तो सदियों से यह बात जानते और मानते हैं|
पर दिल और दिमाग में कई बार लड़ाई भी हो जाती है| ख़ास तौर पर प्रेम या आपसी लड़ाई झगड़ों में और फिर समझ में नहीं आता, किस की मानें और किस की न मानें|
चलिए वापस चलें, जहां से दिल की बात शरू हुई थी|
हमें अपने दिल की बात कहनी है|.. तो सुनिये|
तेज़ तेज़ चलने पर कुछ सांस फूलने लगी, तो डॉक्टर से बात की| उस ने हमें दिल के विशेषज्ञ (cardiologist)के पास भेजा| कुछ टैस्ट आदि किये गये| दिल की एक बड़ी नाड़ी में रक्त-प्रवाह में कुछ रुकावट को देख, हमारे दिल के विशेषज्ञ (cardiologist) ने सलाह दी कि उस में स्टेंट (stent) डाल दिया जाए, ताकि खून को ठीक प्रकार से बहने का रास्ता मिल जाए| यदि ऐसा न किया गया तो, हार्ट अटैक होने का खतरा सिर पर मंडलाता रहेगा| स्टेंट, एक कुंडलीनुमा स्प्रिंग होता है, जैसे बॉल-पॉइंट पेन में, जो एक सुरंग की तरह नाड़ी को सहारा देता है ताकि वे ढीली न हो और खून के प्रवाह में कोई रुकावट न रहे|
हम घबराए, पर उन के और दूसरे मित्रों के समझाने पर, हम तैयार हो गये|
सुबह अस्पताल जाने से पहले यूंही TV को ऑन किया तो उस पर एक Insurance कंपनी का विज्ञापन आ रहा था कि funeral insurance, किसी डॉक्टरी जांच किये बिना, १०% की छूट पाने के लिए, तुरंत फ़ोन करें |
क्या ‘टाईमिंग थी’! आप इमेजन कीजिये कि हमारी क्या हालत हुई होगी| दिल बैठ सा गया| हम ने झट से चैनल बदल हिन्दी की चैनल लगाई|
उस पर पाकिस्तान के एक हास्य शायर ‘अनवर मसूद’ अपनी कविता सुना रहे थे| हमारा दिल खुश हुआ कि चलो कुछ मूड ठीक होगा| वह भी एक बीमा कंपनी का मज़ाक उड़ा रहे थे, परन्तु वह मज़ाक भी हमारी दिल-जोई न कर सका अर्थात हमारे दिल को नहीं भाया| क्यों भला? आप ही पढ़ कर फैसला कीजिये|
बीमा एजंट कह रहा है,
“आप कराएं हम से बीमा, छोड़ें सब अंदेशों को,
इस ख़िदमत में सब से बढ़ कर, रौशन नाम हमारा है
ख़ासी दौलत मिल जायेगी, आप के बीवी बच्चों को,
आप तसल्ली से मर जाएँ, बाक़ी काम हमारा है”
हमारा दिल बैठ गया, हम बेहोश होते होते बचे! हार्ट अटैक भी हो सकता था|
खैर, किसी तरह दिल मज़बूत कर, हम अस्पताल पहुंचे|
अस्पताल में नर्सों ने हमारा जी बहलाने के लिए कहा कि “आप दिल छोटा न करें, ऑपरेशन के बाद आप का दिल फिर से जवान हो जाएगा| यह बात हम आप का दिल रखने के लिए नहीं कह रहे बल्कि आप यदि ठंडे दिल से सोचें तो आप का दिल भी मान जाएगा कि यही सही रास्ता है|”
हम ने दिल मज़बूत कर, अपने को या यूं कहिये कि अपने दिल को, डॉक्टर के हवाले कर दिया| उस ने दिल-ओ-जान एक कर हमारे दिल की नाड़ी में एक लम्बी सी ट्यूब की सहायता से, उस स्प्रिंग को दिल के अन्दर फिक्स कर दिया| सब से बड़ी बात, कोई काट-वाट नहीं हुई और हम साथ साथ स्क्रीन पर ये ‘नज़ारा’ देख भी रहे थे|
दिल जवान होगा या नहीं, दिल की कली खिलेगी या नहीं, यह तो समय ही बताएगा, पर मैं आप को इतना बता देता हूँ कि दिल के अंदर का भय हवा हो गया है|
Short URL: https://indiandownunder.com.au/?p=10563