फिर वही दिल ….
संत राम बजाज
कुछ समय पहले मैं ने दिल पर एक लेख –‘दिल ही तो है’ लिखा था जिसे पढ़ने के बाद एक भाई ने कहा कि मैं ने अपने लेख में ‘दिल वाले दुलहनिया ले जायेंगे’ की तो कोई बात ही नहीं की और न ही ‘हीर रांझा’ और ‘लैला मजनू’ का कोई ज़िकर किया|
उन सज्जन की बात तो वास्तव में ठीक थी,मैं ने यह कह कर माफी मांग ली कि,“भैया ज़हन से उतर गया,फिर कभी लिख दूंगा”,परन्तु मैं उन से भला कैसे कहता कि मैं ने डर के मारे नहीं लिखा| अब आप पूछेंगे कि “किस बात का डर?”
तो सुनिए – यदि मैं ‘दिल वाले दुलहनिया ले जायेंगे’ के बारे में लिखता तो वह २५/२६ साल पहले की बात होती और आजकल के स्टैण्डर्ड के अनुसार मुझ पर ‘लैंगिकवादी- लिंग भेद करने वाला – (sexist)’ का लेबल लग जाता और वे कहते कि दुल्हन कोई भेड़ बकरी थोड़ी हैं कि उन्हें ले जायेंगे|
“क्यों नहीं दिल वाली दूल्हा ले जाती?” दुनिया भर की बहुएं मेरे विरुद्ध हो जातीं और मेरा जीना हराम कर देतीं | और मैं कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता|
आजकल की औरत तो मर्दों से भी आगे निकल गई हैं|
सच बात तो यह है कि आजकल की दुल्हनें तो दूल्हा लेकर गायब ही हो जातीं हैं और दूल्हे के घर वाले देखते ही रह जाते हैं|
दूसरी बात पुराने आशिक़ों की – तो भई न ही लैला-मजनू का मिलाप हुआ और न ही हीर रांझा को मिली, इसलिए सोचा कि उन के बारे में क्या कहने की जरूरत है| लेकिन अब जब ज़िकर कर ही रहे हैं तो उन की बात भी कर ही लेते हैं|
हीर रांझा की कहानी तो पंजाब का ही नही बल्कि सारे भारत का हर जवान से बूढा तक जानता है| (पूरा किस्सा जानने के लिए, वारिस शाह की लिखी ‘हीर’ पढ़ें )
रांझा पूरी तरह से हीर के इश्क़ में फंस चुका था और उस के घर नौकर बन कर उन की भैसों की रखवाली करने लगा था| उधर हीर भी उसे दिल दे चुकी थी|
कहते है ‘इश्क़ और मुश्क छुपाये नहीं छुपते’– माँ बाप और खासकर हीर के मामा कैदों ने हीर की शादी ज़बरदस्ती और धोखे से किसी और से करा दी|
रांझा हीर को न पाने के ग़म में पागलों की तरह इधर उधर भटकता रहा, यहाँ तक कि साधू बन् कान फ़डवा घर घर भीख मांगने लगा था|
देखा दिल क्या क्या काम करवाता है!
वैसे निकला वह डरपोक ! क्यों न हीं हीर को भगा कर ले गया, जबकि उस की छत पर चोरी चोरी मिलने हर रात जाता था|
उधर हीर ज़बरदस्ती किसी दूसरे से शादी करने पर भी रांझे को भुला नहीं पा रही थी|
जान छुडाने के लिए परिवार वालों ने रांझे की मौत की झूठी खबर उडाई जिसे सुन हीर ने प्राण त्याग दिए| कुछ लोग कहते हैं कि हीर को उस के मामे कैदो ने रोज़ रोज़ की बदनामी से बचने के लिए, ज़हर के लड्डू खिला कर मार दिया|
रांझे को जब हीर की मौत का पता चला तो उस ने भी अपनी जान दे दी| प्रेम की इंतहा !
लैला मजनू का भी अंत यही हुआ| दिल के हाथों मजबूर, मजनू भी रेगिस्तानों में कपडे फाड़ पागलों की तरह भटकता रहा और कुछ हासिल न हुआ, सिवाए लोगों के पत्थरों के|
लैला की क़बर पर सिर पटक पटक कर मजनू ने जान दे दी|
ऐसे दिलों के किस्से तो कई हैं –‘सोहिनी महीवाल’, ‘सस्सी पुन्नू’ और ‘मिर्ज़ा साहिबां’ – हाँ मिर्ज़ा के बारे में यह कहा जा सकता है कि वह दूसरों की तरह डरपोक नहीं था – वह साहिबां को भगा ले गया था परन्तु उस की साहिबां ही डरपोक निकली या भाईयों की जान बचाने के चक्कर में उस ने अपना प्रेम और प्रेमी दोनों को ही कुर्बान कर दिया| उस ने मिर्ज़ा के तीर, कमान (जब वह सोया हुआ था), तोड़ दिए और उस के भाईयों ने निहत्थे मिर्ज़ा को मार दिया|
साहिबा भी मिर्ज़ा और भाईयों के बीच ढाल बनकर अपनी जान पर खेल गयी |
शेकस्पीयर के ‘रोमियो और जूलियट’ की कहानी का अंत भी हीर-रांझा की तरह ही है – दोनों की मौत – दोनों के परिवारों में कट्टर दुश्मनी थी| जूलियट के माँ-बाप उस की शादी किसी और से करना चाहते थे, जूलियट के मित्र उसे मरने का नाटक करने के लिए कोई दवाई दे कर सुला देते हैं| रोमियो सोचता है की वह मर गई है और जान दे देता है और जब जूलियट होश में आती है और सच्चाई का पता चलता है तो वह भला कैसे ज़िंदा रह सकती है|
जब दिल से दिल मिलते हैं तो प्रेमी हर खतरा मोल लेने को तैयार हो जाते हैं और आमतौर पर प्राणों की आहुति ही उन के भाग्य में आती है|
तो भैया, यह दिल कोई छोटी मोटी चीज़ नहीं है, दिमाग से भी बढ़ कर इस का प्रभाव है, हमारे जीवन में |
दिलों के ऐसे किस्से, दिमाग भी समझ नहीं पाता !
Short URL: https://indiandownunder.com.au/?p=10883