चाहे पड़ें झुर्रियां ….
संत राम बजाज
“अरे आप बड़े कमज़ोर हो गये हैं|” चौधरी साहिब ने आते ही कहा|
“आप भी तो बड़ी मोरनी की मस्तानी चाल चल रहे हैं”, हम ने हँसते हुए जवाब दिया|
“भई बुढ़ापे की निशानियाँ हैं, देखिये न आप के चेहरे पे अब झुर्रियां साफ़ दिख रहीं हैं|”
“अरे, आईये तो सही. किसी से झगडा कर के आये हैं कि मेरी क्लास लेनी शुरू कर दी|
आप बैठिये मैं अभी आता हूँ, कह हम बाथरूम में घुसे और अंदर लगे हुए शीशे में चैक किया तो वाकई चेहरे पर कुछ झुर्रियां सी दिखाई पड़ीं, जो शायद हम अच्छी तरह से देख नहीं पा रहे थे| थोड़ी चिंता सी हुई|
“क्या हम बूढ़े हो गए हैं?” एक सवाल उठा| पता ही नहीं चला कि जवानी कब पल्ला झाड कर किनारे हो गई या शायद हम ने जान बूझ कर आते बुढ़ापे की ओर देखा तक नहीं|
“सॉरी, चौधरी साहिब !” मैं ने बाथरूम से बाहर निकल कर बात को आगे बढाते हुए कहा| “आप सच कह रहे हैं, अब वास्तव में हम लोग मनु के चौथे आश्रम में पहुँच चुके हैं, अरे वही ‘संन्यास आश्रम’|
“क्या आप के साथ भी ऐसा हो रहा है कि घर में बेटे बेटियां आप को हर काम पर टोकने लगे हैं,
जैसे,“डैडी, सब्ज़ी में और नमक मत डालिए, आप के लिए ठीक नहीं है |”
“आप ने एक और गुलाब जामुन ले लिया| डॉक्टर ने मना कर रखा है|”
“आप ने परांठे पे और घी लगा लिया है”
चौधरी साहिब हंसने लगे और बोले, “आप क्या सोचते है कि आप के घर वालों ने यह ‘पेटंट’ करवा रखा है| अरे साहिब हमारे घर में तो इस से कुछ ज़्यादा ही होता है| अभी कल ही बहु कहने लगी कि, “डैड, आप डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते, आप सारी रात खांसते रहते हैं |”
यानी जब अपने घर में आप खुल कर खांस भी न सकें (पादना और डकारना तो दूर की बात है!), तो समझो
नर्सिंग होम जाने का समय आ गया है| यानी ‘शाहजहाँ’ को ताज महल से दूर ‘किले’ में बंद कर दो|”
“क्या फ़िल्मी डायलाग मारा है आपने!”
“आप को याद है हमारी सीनियर मीटिंग में वह ‘दस का पहाड़ा’ किसी ने सुनाया था, उस की एक लाइन “१० अठे अस्सी, मंग्या दुध ते मिली लस्सी” – बड़ी जचती है और यह एक तरह का इशारा है कि घर में अब आप की हकूमत खत्म हो गई है|”
“वैसे तो वे हमारी भलाई के लिए ही कह रहे हैं ना! यह रोकना-टोकना तो चलता ही रहता है| पहले हम करते थे अब वे कर रहें हैं| बल्कि सच तो यह है हम अभी तक पंगा लेते रहते हैं|
“अब क्या करें, मन को पूरी तरह से मार भी तो नहीं सकते”|
“मारना भी नहीं चाहिये’ बल्कि मन की इच्छायें पूरी करने का retirement में अच्छा मौक़ा है|”
“अच्छा और सुनिए, रात को टॉयलेट फ्लश नहीं कर सकते क्योंकि उस से भी उन की नींद में खलल पड़ता है|”
“भई, कुछ भी हो, घर के बाहर भी आप को संकेत मिलते रहते हैं, अब आप ने नोट किये या नहीं, आप पर निर्भर करता है| और यह बात हमारी उमर के सब लोगों पर लागू होती है|
बस या ट्रेन में आप को देखते ही कोई सीट ‘आफर’ कर दे, या किसी पार्टी में खाने की लाइन में आप को प्लेट देकर सब से आगे खाना लेने के लिए कहा जाए तो समझ लीजिये कि आप बूढ़े हो गए हैं|
आप मानें या न मानें, बूढ़े तो आप हो ही गए हैं, पर “मैं न मानूं” की रट लगाए रहते हैं| और ऐसे काम करते रहेंगे की पता चले आप बड़े फिट हैं जैसे घर के गार्डन में खुदाई करने बैठ जायेंगे या गमले इधर से उधर करेंगें और फिर हफ्ता भर मालिशिए से मालिश कराते फिरेंगे और Panadol की गोलियां खाते रहेंगे क्योंकि आप का ‘muscle pull’ हो गया था|
लेकिन मजेदार बात यह है कि यदि आप को कोई ‘सीनयर’ की बजाये ‘बुढ्ढा’, ‘बुड्ढी’ कहे तो आप उस पर मुकद्दमा ठोक सकते हैं!”.. ऐसे ही मज़ाक़ कर रहा हूँ!
कल किसी सज्जन ने ‘What’s app’ में कुछ इस तरह से डाला था, कि ‘जीने की असली उमर तो साठ है, बुढ़ापे में ही असली ठाठ है’ – ‘ओल्ड इज गोल्ड’ (Old is Gold)! अब बात पुरानी लगती है| ‘बुढ़ापे’ की परिभाषा बदल रही है और कौन इस श्रेणी में कब आता है, जरा विवाद का विषय बनता जा रहा है|
सरकार तक बोखला गई है कि उन्होंने जो अंदाज़े लगाये थे कि ६०/ ६५ की आयु के बाद ५, ६ साल की पेंशन ले बहुत से लोग ‘चलते बनेंगे’, पर ऐसा हो नहीं रहा है और ८०, ९० के लोगों की भरमार है| अब ऐसे में तो खजाने खाली हो जायेंगे – स्वाभाविक है सरकार का चिंतित होना| मानो कि वे कह रहे हैं कि इस में सरकार का क्या कसूर, ये लोग मरते ही नहीं!
तो ऐसे में क्या करना चाहिए? आप को भी तो अपने बचाव के लिए कुछ करना होगा|
पहले तो ‘होम फ्रंट’ पर – ’श्रवण कुमार’ जैसे काल्पनिक पुत्रों की इंतज़ार में दुखी मत हों| हर घर में ‘राहुल गांधी’ नहीं होता, जो आप के लिए सरकार से भिड़ जाएगा, आप को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी है|
अपनी डिफेन्स के लिए नये जुगाड़ कीजिये| सब से पहले, घर के अन्दर सास-बहू के ‘कुरुक्षेत्र’ में आप की हैल्प कौन करेगा भला? कौन बनेगा आप का कृष्ण? ऑफ़ कोर्स, आप के पोते और पोतियाँ | यह बात ‘सोलह आने’ सच है| और जैसे मैं ने पहले ही राहुल गांधी की मिसाल दी – वह मतवातर अभी भी अपनी नानी की खबर लेने इटली जाता रहता है, क्योंकि बेचारे की दादी तो रही नहीं|
और देखिये ब्रिटेन के छोटे शहजादे प्रिंस हैरी को, अपनी दादी की काफी सारी डियूटीयां निभाने के लिए विदेशों में अपनी गर्भवती पत्नी को साथ लिए घुमते फिर रहे हैं| इस से अमेरिकन पत्नी का दिल भी बहल जाएगा और नई वाली सास (कोमिला) और नई वाली बहू में तू-तू-मैं-मैं के चांस भी कम हो जायेंगे|
इस स्मार्ट फोन और स्मार्ट टीवी के युग में आप को बेटे-बहू के मुकाबले में पोते-पोतियों की सहायता बहुत अनिवार्य है| “What’s app, Facebook और Youtube आदि की जानकारी और रोज़ रोज़ की गलतियों को ठीक करने का टाइम और धैर्य सिवाए उन के, और किस के पास होगा|
और हाँ, उन्हें अपनी ओर रखने में कोई ख़ास मेहनत भी नहीं करनी पड़ती| आप को ‘परियों और शेह्जादों की कहानी भी नही सुनानी पड़ेगी, आजकल सब कुछ internet पर मिलता है| थोड़ा प्रेम और ध्यान देने की ही ज़रुरत है|
घबराईये नहीं !
हम में से कुछ लोग अकेले भी रहते हैं| उन्हें अपनी इस ‘आज़ादी’ का पूरा पूरा फायदा उठाना चाहिए|
अकेलापन – आप का सब से बड़ा दुश्मन हो सकता है, यदि आप इस को पूरी तरह से अपने वश में नहीं करते|
तो हमें बुढ़ापे को समस्या या बीमारी न समझ कर एक worry free यानी चिंता-रहित ज़िन्दगी का पड़ाव समझना चाहिए| सभा-सोसाईटियों के सदस्य बनिये, मंदिर गुरद्वारे आदि धार्मिक स्थानों पर जाईये, अपने इलाके में अस्पताल, कौंसिल लाईब्रेरी आदि में volunteer का काम कीजिये|
दुसरे सब से बड़ी बात, अपने आप को स्वस्थ रखिये |
मनु के चौथे आश्रम में प्रवेश कर चुके है आप| दांत नकली हैं तो कोई बात नहीं, आँख पे चश्मा है चलेगा, कान में सुनने का आला, दिल की नाड़ी में स्टेंट ये सब अब नार्मल चीज़ें हैं| ‘एंटी-एजिंग’ क्रीम लगाये, विटामिन खाईये|
BP हाई है या diabetes है, घुटनों में दर्द है, क्यों फ़िक्र करते हैं – दवाईयां हैं ना सब बीमारियों की!
यह मत सोचिये कि कितनी और किस रंग की गोलियां हैं, बस खाईये|
आशीर्वाद दीजिये और दुआएं लीजिये|
और
‘लगे रहो मुन्ना भाई’ चाहे पड़ें झुर्रियां !
……………….
एक अमीर बूढ़े आदमी ने एक युवा से शादी की। लड़की से पूछा गया, “आपने इनमें क्या देखा जो शादी की?”
लड़की ने शर्मा के जवाब दिया, “एक तो इनकी इनकम और दुसरे इनके दिन कम। ”
……………..
Short URL: https://indiandownunder.com.au/?p=12019