दवाईयों की लपेट में! … संतराम बजाज
मेरा मक़सद आपकी बीमारियाँ जानने का नहीं है और न ही आप कितनी दवाईयाँ लेते हैं, या फिर कब और क्यों|
आप को ‘क़ब्ज़ी’ है और इसबगोल का छिल्का लेते हैं या कुछ और, यह आप जानें या आप का डॉक्टर, मेरा उस से कुछ लेना देना नहीं है| और न ही मुझे इस बात में दिलचस्पी है कि आप ‘लक्कड़ हज़म,पत्थर हजम चूर्ण’ का सेवन करते हैं| मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है कि मैं दूसरों के झमेलों में पडूं|
मैं तो केवल अपनी परेशानी का हल ढूँढने के लिए कुछ जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहा हूँ| मैं तो यह पता लगा रहा हूँ कि आप दवाई लेते कैसे हैं, मेरा मतलब यह है कि आप को कैसे पता रहता है कि आप ने आज दवाई ले ली है, या कि दो बार तो नही ली है|
कैसे मैनेज करते है कि नीली गोली आधी लेनी थी या पीली या कि सफ़ेद वाली गोली सुबह और मोटी वाली रात को| यह जो अभी ली है ‘एस्परीन’ की गोली थी या उसी के रंग की ‘क्रेस्टोर’ तो नहीं थी जो कोलेस्ट्राल (cholesterol) के लिए रात को लेनी थी|
आप में से कुछ लोग मेरी यह परेशानी देख कर मन ही मन हंस भी रहे होंगे कि क्या बेवकूफी की बातें कर रहा हूँ|
कोई बात नहीं, यह तो वही जाने, जिस तन लागे!
हो सकता है, मेरी तरह कई और भाई बहन भी इसी मुसीबत में हों और मारे शर्म के पूछने से घबराते हों| चलिए, कोई ढंग का हल मिल गया तो, मेरे साथ साथ उन का भला भी हो जाएगा!
अब एक दवाई हो तो ऐसी कोई समस्या वाली बात नहीं थी| जैसे भले वक्तों में, वैद्य हकीम के पास जाते थे, एक दवाई की तीन पुड़िया,– एक वहीं पानी के साथ उस के सामने, दूसरी दोपहर को खाने के साथ और तीसरी रात को सोने से पहले दूध के साथ ले लेते थे| दूसरे दिन फिर जा कर तीन पुड़िया और ले आओ| न कोई झंझट और न कोई कम्प्लीकेशन| खाने पीने का परहेज़ भी बता देते थे, ‘खुशक फुल्का’ और धुली मूंग की दाल|
पहले इतनी बीमारियाँ भी कहाँ होती थीं, बस, पेट का दर्द, खांसी बुखार या बवासीर! पेट दर्द के लिए गोली, बुखार में कड़वी लाल रंग की पीने की दवा और बवासीर के लिए मरहम|
पीने की दवाई भी एक शीशी में डाल उस पर एक side में एक पेपर चिपका कर तीन निशान लगा दिए जाते थे ताकि तीन खुराकें बराबर बराबर हों|
खैर, बदलते ज़माने के साथ बदलना तो होगा|
अब BP, Diabetes, हार्ट की, Arthritis आदि आदि, दर्जनों बीमारियाँ हैं और क़ुदरती बात है कि दवाईयां भी तो उसी हिसाब से दर्जनों में ही होंगी|
यह तो आप भी जानते हैं कि इस हिसाब से हर घंटे कोई न कोई दवाई लेनी पड़ सकती है, जो कि प्रेक्टीकल नहीं है|
दवाईयों को दो या तीन ग्रुपों में बांटा जाता है| कौन सी आपस में फ्रेंडली हैं और कौन सी एक दूसरे से मिल गईं तो फायदे की बजाये नुकसान होने का भय होता है|
अब आप के डॉक्टर के पास तो इतना टाइम होता नहीं कि समझाए|
आप पढ़े लिखे हैं, पैकट के अन्दर वाले लिटरेचर के पर्चों को पढ़ें, उन के side effects नोट करें और फिर फैसला करें| यह बात दूसरी है कि side effects पढ़ कर इतना डर लगता है कि डॉक्टर ने यह दवाई कहीं गलती से तो नहीं लिख कर दे दी, क्योंकि फायदा होने के मुकाबले में नुकसानों की लिस्ट बहुत लम्बी होती है| और करीब करीब हर दवाई की दूसरी या तीसरी लाइन में लिखा होगा, “यह दवाई मत लीजिये यदि आप pregnant हैं|” तो भैया! क्या हम औरतों वाली दवा ले आये?
दवाईयाँ आम तौर पर गोलियों (tablets) की शकल में होती हैं और बंद बोतलों में, या पैकटों में या डिब्ब्यों में आती हैं, जिस पर केमिस्ट आप के नाम की पर्ची चिपका कर दे देता है| कुछ पर लेने की विधि लिखी होती है, कुछ पर ‘use as directed’|
कुछ एक मित्र बड़े विधि-निपुण हैं, डिब्बियों या पैकटों में से सीधे गोली निकाली और खा ली| हमारे एक मित्र, जो काफी मजाकिया हैं, का कहना है कि यह सब से सेफ तरीका है, क्यों कि,”क्या पता घर में किसी की आप की सम्पत्ति पर नज़र हो और वह आप को किसी तरह का ‘डबल डोज़’ न देता रहे|”
कुछ एक ने pillbox बना रखे हैं और लेबल लगा रखे हैं – सुबह, दोपहर और रात, जिन में हफ्ते भर की दवाई भर ली जाती हैं| pillbox वाला अच्छा साफ़ सुथरा तरीका है, लेकिन इतना आसान भी नहीं| उस बॉक्स को भरने में आप को कई बोतलों और पैकटों में से तरह तरह की दवाईयां निकालनी होंगी| तोडनी होंगी, यदि पूरी नहीं लेनी है, फिर गिन कर उचित खाने में रखनी होगी| घंटों लग जायेंगे इस काम में |
परन्तु यह बोतलें या शीशयाँ खोलना बड़े जोखम का काम है|
“खुल जा सिम सिम” कहने पर वे झट से नहीं खुलतीं| उन्हें ‘चाइल्ड प्रूफ’ बनाया जाता है ताकि बच्चे न खोल सकें, पहले प्रेस करो, फिर ट्विस्ट करो, तब वह खुलेगी| मैं तो कहता हूँ कि वे ‘बुज़ुर्ग प्रूफ’ हैं, क्योंकि हमारे जैसे जो टूथ पेस्ट की ट्यूब में से ढंग से पेस्ट तो निकाल नहीं सकते फिर यह कैसे कर पाएंगे? बच्चे तो शायद फिर भी खोल लेते होंगे, पर हम जैसे तो अपनी कलाई ही रगड़ते रह जाते हैं| और यदि ज़्यादा ‘पहलवानी’ दिखाई तो फिर एक एक्स्ट्रा दवाई लिस्ट में जुड़ जायेगी|
सच बताईये,कितने लोग उन्हें झट से खोल लेते हैं?
कई केमिस्ट, सुना है, ये काम आप के लिए कर देते हैं, यानी आप के pillbox भर देते हैं| एक तो होता है स्पेशल जिसे Webster पैक कहते हैं, जिस में ढेरों दवाईयां भर सील कर दिया जाता है|
परन्तु, इस बात की क्या गारंटी है कि आप वह बॉक्स खोलेंगे भी, या ऐसे ही सो जायेंगे|
पति पत्नी एक दूसरे को याद दिला सकते है, किन्तु यदि आप अकेले रहते हैं तो याद कौन कराएगा?
आजकल कुछ अलार्म या ‘मोबाइल एप’ की मदद से आप को याद दिला दिया जाता है कि दवाई का समय है| लेकिन इन एप्स को सीखने के लिए आप को कोई ‘डिप्लोमा’ लेना होगा|
कर पायेंगे क्या? मैं तो उसे ‘forget it’ के बक्से में डालता हूँ|
चलिए, गोलियों को किसी तरह से आपने ने डिब्बी में बंद कर लिया, परन्तु आँखों के ड्रॉप्स वाली शीशी, नाक का स्प्रे पम्प या अस्थमा का इन्हेलर (inhaler), उन का क्या करेंगे?
भई, कुछ न कुछ तो करना ही होगा|
मेरी मानें तो ये बड़ी बड़ी दवाई बनाने वाली कम्पनियां, जो करोड़ों अरबों डॉलर कमाती हैं, उन्हीं का दाइत्व बनता है कि कुछ करें|
एक तरीका भी बताये देता हूँ|
क्यों नहीं, हर शीशी या पैकेट पर एक बोलने वाला ‘चिप’ लगा दें जो पहले तो आप को अलार्म द्वारा दवाई के लिए सुचेत करे, फिर जब उसे छुआ जाए तो, ढकना खुले और ठीक मात्रा में दवाई आप के हाथों में दे कर बंद हो जाए|
और यदि गलती से आप उसे दुबारा हाथ लगाएं, तो प्यार से कह दे कि “रुकिए, आप दवाई ले चुके हैं| इंतज़ार कीजिये, समय आने पर आप को बता दिया जायेग|”
यदि आप फिर भी न रुकें तो सख्ती से कहे कि “स्टॉप! खुदकुशी का इरादा है, क्या?”
इस में भी एक प्राब्लेम है, क्या पता वह अलार्म सुनाई भी देगा या नहीं, क्योंकि हो सकता है आप की ‘हीयरिंग एड’ एन वक्त पर धोखा दे जाए| उस के लिए छोटी छोटी तीन रंग की ’ट्रेफिक लाइट्स ’ की तरह यानी ग्रीन, आरेंज और रेड की फ्लेशिंग लाइट्स भी होनी चाहियें |
मैं ने जो कहना था कह दिया, अब बाक़ी उन की मर्जी और आप की क़िस्मत!
क्योंकि यदि आप ने उस डिब्बी या शीशी को हाथ ही नहीं लगाया, तो? …. तो, नर्सिंग होम ही आप के लिए उचित स्थान है|
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