हम और हमारी पहली साइकिल …संतराम बजाज

बेशक आजकल कारों में घूमते हैं, परन्तु जब बचपन के दिनों की याद आती है तो, उस पहली साइकिल को भुलाए नहीं भूल पाते|
उन दिनों की साइकिल बहुत सादा होती थी, आजकल की तरह दर्जनों गीयर और तरह तरह के टायर और हैंडल नहीं होते थे| वैसे तो २०० साल वाली पहली साइकिल के पैडल ही नहीं थे और उस का फ्रेम लकड़ी का था|
हाई स्कूल घर से करीब ६-७ मील (१०-१२ किलोमीटर) की दूरी पर था| गाँव से ७,८ और लड़के भी उसी स्कूल में साइकिलों पर ही जाते थे| इसलिए साइकिल खरीदी गई |
नई साइकिल आने पर माँ ने कुछ लाल मिर्चे साइकिल के ऊपर से घुमा कर आग में डाल दीं, “बुरी नज़र वाले, तेरा मुंह काला”|

सिखाने के लिए बहुत मिन्नत-समाजत के बाद बड़े भाई को मना पाए| रिश्वत में अपने हिस्से की देसी घी की पिन्नियां और नई साइकिल पर सब से पहले सवारी |
पास के प्राइमरी स्कूल के मैदान में पहुँच कर एक पत्थर का सहारा ले सीट के ऊपर बैठाकर, भाई ने दोनों हाथों से हैंडल को पकड़ने और पाँव पैडल पर रख बिलकुल सीधा बैठने को कहा|
लेकिन हम तो इधर उधर डावांडोल हो रहे थे| उस ने एक साइड से हैंडल को पकड़ कर साथ साथ चलना और साइकिल को सीधा रखने में सहायता की|
कुछ देर बाद उस ने सीट को पीछे से पकड़ कर हमें पैडल चलाने को कहा, और वह साथ साथ भागते हुए, हमें गिरने से बचाता रहा|
दो दिन की प्रैक्टिस के बाद हम साइकिल को सीधा रखने में कामयाब हो गए| अब वह बीच बीच में बिना बताये साइकिल को छोड़ देता, पर साथ साथ भागता रहता|
दो दिन और लगे, कि हम बिना सहारे के साइकिल को सीधा चलाने तो लगे, पर पूरा कॉन्फिडेंस नहीं था|
पांचवें दिन हम ने बाएं पैडल पर बायाँ पैर रख, साइकिल को थोड़ा दौड़ा कर, उचक कर सीट पर बैठना भी सीख लिया| अब थोड़ी स्पीड भी पकड़ने लगे थे|
सब कुछ ठीक जा रहा था कि अचानक से एक आदमी हमारे सामने आ गया और हम ने ब्रेक लगाई, लेकिन बजाये इस के कि साइकिल रुके, हम ही उछल कर उस आदमी के ऊपर जा गिरे, और उस ने गुस्से और हडबडाहट में अगले पहिये को पकड़ पूरी साइकिल हवा में उछाल दी, जो हमारे ऊपर आ गिरी और नतीजा तो आप जानते ही हैं, कि कुछ खून, कुछ खरोंचें और इज्ज़त का फलूदा ! उन दिनों हेल्मट का नाम भी नहीं सुना था|
असल में हम ने घबराहट में अगले पहिये की ब्रेक लगा दी थी, जब कि लगानी थी पिछले की या फिर दोनों एक साथ, यह गुर हम घबराहट में भूल गए थे|
हफ्ते, दस दिन में हम अपनी साइकिल को चलाने में पूरी तरह से तैयार हो गए थे|
नई साइकिल में घंटी, कैरियर और हवा भरने वाला पम्प भी लगे हुए थे| हम ने बड़ी धूम धाम से नई साइकिल का ट्रायल किया, घंटी बजा बजा कर मोहल्ले भर में पब्लिसिटी की, जिस का रौब लोगों की बजाये गली के कुत्तों पर ज़्यादा पड़ा और उन्होंने भौंक भौंक कर हमारा पीछा करना शुरू कर दिया| हम जान बचा कर भागे|
घर के निकट पहुँचने पर साइकिल कुछ डगमगाई, हम ने झट से काबू किया और बायाँ पैर जमीन पर रखा, देखा तो दाहिनी ओर साइकिल की चेन में हमारा पाजामा फंस चुका था और ज़रा सी देर हो जाती तो हम बुरी तरह से गिरते और चोट खाते| हमारी साइकिल पर चेन-गार्ड नहीं लगा हुआ था और हम पाजामे पर क्लिप लगाना भूल गए थे|
हाँ, एक दिन एक और परेशानी हो गई| हम पैडल पे पैडल घुमा रहे हैं और चेन घूमे जा रही है, पर साइकिल वहीं की वहीं| साथ वाले लड़के ने बताया कि इस के ‘कुत्ते फेल’ हो गये हैं| हमारी समझ में कुछ नहीं आया| मिस्त्री के पास ले जाना पड़ा|
अब प्रति दिन हमारा कॉन्फिडेंस बढ़ने लगा और हम दूसरी सवारी तक आगे डंडे पर या पीछे कैरियर पर बिठा कर साइकिल चला सकते थे|
एक दिन हमारी छोटी चचेरी बहन को पीछे कैरियर पर बिठा, सर्कस के करतब तक दिखाने लगे| वह कुछ घबरा रही थी| “डरना मत”, बीच बीच में उसे हौसला देते रहे| साइकिल ऊंची नीची ज़मीन पर तैरती हुई निकल रही थी और हम फुल स्पीड पर पैडल मार रहे थे| मज़ा आ रहा था!
कुछ देर बाद दूर से किसी के रोने की आवाज़ आई और हम ने साइकिल रोक कर देखा तो पसीने छूट गए, क्योंकि हमारी सवारी यानी हमारी बहन गायब थी और वह काफी दूर जमीन पर पड़ी रो रही थी|
हमें इस बात का बिलकुल पता ही नहीं चला कि वह कब और कहाँ गिरी थी| भाग कर उसे उठाया|
घर जाकर, हमें क्या सज़ा भुगतनी पड़ी, न ही पूछें तो अच्छा है|
Short URL: https://indiandownunder.com.au/?p=15873