दिवाली की रात
संतराम बजाज
जेब तो खाली होनी ही थी जबकि सारी पूंजी हार चà¥à¤•à¤¾ था। १०० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ और महीने की आखिरी तारीख, दो अलग अलग बातें हैं, परंतॠमेरे पास ५० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ थे जो अब सामने बैठे देवेंदà¥à¤° की जेब में जा चà¥à¤•à¥‡ थे। खेल में मैं बिलकà¥à¤² अनाडी ही हूठ– केवल दिवाली को ही दो चार हाथ हो जाते हैं। शà¥à¤°à¥ शà¥à¤°à¥ में तो दस बीस जीता à¤à¥€, पर जलà¥à¤¦à¥€ ही जेब हलà¥à¤•à¥€ होने लगी। अब सिवाये उठने के कोई चारा à¤à¥€ न था। दिवाली का दिवाला बन चà¥à¤•à¤¾ था।
सीधा घर पहà¥à¤‚चा – घर à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ है, बस à¤à¤• कमरा है जिस का à¤à¤• दरवाज़ा है, à¤à¤• खिड़की है और à¤à¤• रौशनदान – न नहाने के लिये बाथरूम, न रोटी के लिये रसोई – और मेरे विचार में जब तक ढाबे वाले ज़िनà¥à¤¦à¤¾ हैं, रसोई की किसी à¤à¥€ मकान में ज़रूरत ही नहीं। नहाने धोने के लिये नगरपालिका के नल लगे हà¥à¤ हैं।
लकà¥à¤·à¤®à¥€ माता की तसà¥à¤µà¥€à¤° के सामने बैठगया और लगा पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने कि हमारी ओर à¤à¥€ कृपा हो जाये। न जाने कब तक लकà¥à¤·à¤®à¥€ माठकी मिनà¥à¤¨à¤¤à¥‡ करता कि अचानक किसी के दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई। दिल ही दिल मे कà¥à¥à¤¨à¥‡ लगा कि कौन होगा जो रात को à¤à¥€ आराम नहीं करने देता – दिवाली की रात à¤à¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं अपने घर बैठते लोग?
”कौन है?” मैं ने गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ से पूछा।
”दरवाज़ा खोलो, सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही मालूम हो जायेगा” – यह à¤à¤• सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ की आवाज़ थी। मैं घबरा गया – ‘काटो तो बदन में लहू नहीं’ वाली बात हो गई। इस समय इतनी रात गये यह सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ कहाठसे आ गई, यहाठतो दिन में à¤à¥€ किसी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के दरà¥à¤¶à¥à¤¨ ही होते – शायद कोई अबला बेचारी गà¥à¤‚डों से बच कर सहारा ढूंढ रही हो। फिर विचार
आया कि कहीं मà¥à¤à¥‡ लूटने के लिये किसी ने जाल न बिछाया हो- पर मेरे पास रखा ही कà¥à¤¯à¤¾ है जो कोई लूट लेगा ।
बिना कोई फैसला किये मैं बोल पड़ा, ”पहले अपना परिचय कराओ, तब दरवाज़ा खà¥à¤²à¥‡à¤—ा”
”तà¥à¤® à¤à¥€ कितने डरपोक हो! मैं कोई डाकू तो नहीं जो तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ लूट लूंगी, तà¥à¤® से कà¥à¤› लेने नहीं आई हूà¤, दरवाज़ा खोल दो”
”बहà¥à¤¤ चालाक मालूम होती हो, इस तरह तà¥à¤® सफल नहीं हो सकती”, मैं और गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ से बोला।
”जानना चाहते हो मैं कौन हूà¤, तो सà¥à¤¨à¥‹ – मैं लकà¥à¤·à¤®à¥€ हूठ– धन दौलत की देवी – आज दिवाली की रात मैं जिस के घर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करूंगी, वह बहà¥à¤¤ धनी हो जायेगा। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ अमीर बनाने आई हूà¤à¥¤ मैं बाहर खड़ी थक गई हूà¤, ज़रा जलà¥à¤¦à¥€ से किवाड़ खोलो।”
मैं बहà¥à¤¤ ज़ोर से ठहाका मार कर हंसा। ”लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€! कà¥à¤¯à¤¾ नाम चà¥à¤¨à¤¾ है तू ने ठचालाक औरत? लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ माठतो कà¤à¥€ à¤à¥‚ले से à¤à¥€ इधर नहीं आ सकती। गली के नà¥à¤•à¥à¤•à¥œ पर जो गनà¥à¤¦à¤—ी का ढेर है, वही उन की हद है, उसे वे पार नहीं करेंगी – इसलिये अब तà¥à¤® à¤à¤¾à¤— जाओ, नहीं तो मैं पड़ोसियों को जगा दूंगा और फिर हम सब तेरी बोटी बोटी नोच डालेंगे।”
”मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कैसे विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ दिलाऊà¤? अचà¥à¤›à¤¾, उठो और दरवाज़े की दराज़ से ही देखो, मैं अपने असली रूप में आती हूà¤à¥¤”
अब के मैं ने हिमà¥à¤®à¥à¤¤à¥à¤¤ की और दरवाज़े के साथ लग कर बाहर देखा – à¤à¤• दम मेरी आà¤à¤–े चà¥à¤‚धà¥à¤¯à¤¾ गईं! कà¥à¤¯à¤¾ देखता हूठकि लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ माता à¤à¤• सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° से कमल के फूल में विराजमान हैं और अपने à¤à¤• दायें हाथ से सोने के सिकà¥à¤•à¥‡ बरसा रही हैं। उन के तेज बल से मैं चकरा कर नीचे गिर पड़ा, उठा और संà¤à¤² कर बैठगया। आà¤à¤–ों पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ही नहीं हो रहा था कि यह साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ माता ही हैं।
फिर बोला, ” माà¤! तà¥à¤® इस ओर कैसे आ गईं? मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ नज़रों में कैसे आ गया? तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ तो किसी à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ नेता के ‘सविस’ बैक आकाऊंट में, किसी मिनिसà¥à¤Ÿà¤° की कोठी में जाना चाहिये था, या किसी बà¥à¤²à¥ˆà¤• मारà¥à¤•à¥€à¤Ÿà¥”Œà¤¯à¥‡ की जेब में या फिर किसी सेठकी तिजौरी की शोà¤à¤¾ बनना चाहिये था – इस à¤à¥Œà¤‚पड़ी में कà¥à¤¯à¤¾ लेने आई हो?”
”बेटा! तू नहीं समà¤à¤¤à¤¾, इनही लोगों ने तो मà¥à¤à¥‡ बदनाम कर रखा है, मैं तो इन से तंग आ चà¥à¤•à¥€ हूठ।
कà¥à¤› à¤à¤• को तो मैं तिहाड़ जेल में पहà¥à¤‚चा आई हूठऔर शेष को à¤à¥€ छोड़ूंगी नहीं। आज मैं ने सोचा किसी निरà¥à¤§à¤¨ पर दया कर के देख लूà¤, शायद वह मà¥à¤à¥‡ बेइज़à¥à¥›à¥à¤¤à¥€ से बचाये।”
”परंतॠमाà¤! जिस के पास तू जायेगी वह निरà¥à¤§à¤¨ कहाठरहेगा? वह à¤à¥€ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ साथ वैसा ही वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करेगा।”
लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ माठउदास होकर बोलीं, ”बात तो ठीक है तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€, मैं ने इस से पहले à¤à¥€ कई बार गरीब लोगों पर कृपा की है पर मà¥à¤à¥‡ पाते ही वे लोग शीघà¥à¤° ही बदल जाते हैं।
”तो फिर यह सब जानते हà¥à¤ à¤à¥€ माà¤, तà¥à¤® मà¥à¤ पर कैसे विशवास कर सकती हो? मैं तो कहता हूठअà¤à¥€ à¤à¥€ समय है लौट जाओ, किसी अमीर को और अमीर बना दो, किसी सेठकी तिजौरी में नोटों की कà¥à¤› तहें और बà¥à¤¾ दो, किसी की à¤à¤• कार की दो चार कारें बना दो, किसी…”
”नहीं बेटा नहीं! मà¥à¤à¥‡ ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ शरà¥à¤®à¤¿à¤¨à¥à¤¦à¤¾ न करो”, लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी ने मेरी बात काटते हà¥à¤ कहा, ” जहाठमेरा मान न हो, मेरा गलत इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² हो मैं वहां ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर नहीं टिकती – मैं चलती फिरती रहती हूठ– आज यहाठतो कल वहाà¤, पापी लोगों को पसनà¥à¤¦ नहीं करती।”
”देखो माà¤! तà¥à¤® गलत बात कह गई हो – तà¥à¤® सेठगोरधन को तो जानती हो – जो पहले गलियों में आईसकà¥à¤°à¥€à¤® कà¥à¤²à¥à¤«à¥€ बेचा करता था-जो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ कृपा से अब वह कितना धनी बन गया है। अà¤à¥€ कल ही उस ने दो नई कारें खरीदी हैं, कई कोठियां हैं उस के पास – गरीबों का खून चूसता है … और तो और, जिस कमरे में मैं रहता हूà¤, वह à¤à¥€ उसी का है, पिछले दो महीनों से मैं बीमार चल रहा हूठऔर उस का किराया नहीं दे सका – उस ने मà¥à¤à¥‡ धमकी दी है कि मà¥à¤à¥‡ मकान से बाहर निकाल देगा। इसलिये मैं ने आज दो पतà¥à¤¤à¥‡ फैंके थे पर वे à¤à¥€ उलà¥à¤Ÿà¥‡ ही पड़े … अब तू ही बता कि तू किस का साथ देती है?”
”बस! बस!! बहà¥à¤¤ हो चà¥à¤•à¤¾”, लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ माठà¤à¤•à¤¦à¤® बिफर पड़ी, ” तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ नसीब ही फूटा हà¥à¤† है जो घर आई लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ को ठà¥à¤•à¤°à¤¾ रहे हो, इसलिये तà¥à¤® सारी आयॠरोते रहोगे, मैं à¤à¤• बार इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° चली गई तो फिर हाथ नहीं आऊंगी और तà¥à¤® केवल कलरà¥à¤•à¥€ ही करते रहोगे, और à¤à¤• बात और, मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ सेठगोरधन दास को ही छोड़ कर आ रही हूà¤à¥¤”
”ठहरो माठठहरो, मैं अà¤à¥€ दरवाज़ा खोलता हूà¤, मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤·à¤®à¤¾ कर दीजिये,मैं आप से बहà¥à¤¤ कड़वी बातें कर गया, मेरी अक़à¥à¤² पर परà¥à¤¦à¤¾ पड़ गया था”, मैं ने उठकर दरवाज़ा खोलते हà¥à¤ कहा, ”आओ, आओ अनà¥à¤¦à¤° आओ – वासà¥à¤¤à¤µ में मेरी तो क़िसà¥à¤®à¤¤ जाग गई है जो आप पधारीं और अब उस गोरधन दास के बचà¥à¤šà¥‡ की à¤à¥€ अक़à¥à¤² ठिकाने आ जायेगी, बड़ा चला था सेठबनने और मà¥à¤à¥‡ मकान से बाहर करने, मैं उसे ही अब उस की कोठी से निकाल बाहर करूंगा तब मज़ा आयेगा और…”
मेरी बात मेरे मूà¤à¤¹ में ही अटक गई, रगों में खून जम सा गया, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दरवाज़े पर सेठगोरधन दास खड़ा चिलà¥à¤²à¤¾ रहा था, ” हरामी सà¥à¤…र! à¤à¤• तो दो महीने से किराया नहीं दिया और दूसरे हमें ही गाली दे रहा है और वह à¤à¥€ हमारे सामने। निकल जा इस मकान से! नहीं तो धकà¥à¤•à¥‡ मार मार कर निकाल दूंगा।”
और मैं कà¤à¥€ सेठकी ओर देखता और कà¤à¥€ कमरे में लगी लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ माता की तसà¥à¤µà¥€à¤° को जो मैं आज ही बाज़ार से २ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ ५० पैसे में खरीद कर लाया था।
… मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¥‡ लगा कि जैसे वह मेरी ओर देख कर मà¥à¤¸à¥à¤•à¤°à¤¾ रही थी।
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