भारत के निराले स्पेशलिस्ट ….संतराम बजाज
स्पेशलिस्ट का मतलब, विशेषज्ञ अर्थात किसी ख़ास काम में माहिर व्यक्ति | आम तौर पर हम डाक्टरों के बारे में ज्यादा तौर पर इस्तेमाल करते हैं| कोई हार्ट स्पेशलिस्ट है तो कोई ह्ड्डियों का या कोई दिमागी बीमारियों का|
बहुत साल पहले अमृतसर में एक ‘राधू शाह छोले वाला ’होता था, (अब है या नहीं पता नहीं, वह केवल छोले ही बेचता था और कुछ नहीं |
जम्मू में एक व्यक्ति केवल हलवा बेचता है और वह एक निश्चित समय पर अपने अड्डे पर आता है, लोग लाइन लगा कर पहले ही खड़े होते हैं, आप को नहीं मिला तो दूसरे दिन का इंतज़ार |
अच्छा उस बाबे को क्या कहेंगे, जो सड़क के किनारे भुट्टे भून भून कर देता है, और वह भी एक ख़ास समय पर आता है और स्टॉक ख़त्म होने पर घर चला जाता है|
ऐसे कई लोग हैं जो एक काम में, एक चीज़ के बनाने में महारत रखते हैं, तो उन को और क्या कहेंगे – स्पेशलिस्ट ही तो| हरिद्वार की एक गली में जमीन पर बैठ एक मूंग की सूखी दाल- ’सुरजा की दाल’ – पत्तों की प्लेटों में बेचता है, जो लोग चटखारे ले ले खा रहे होते हैं|
चांदनी चौक दिल्ली में देसी घी की जलेबी बनाने वाला है, जिस के अड्डे पर घंटों इंतज़ार करते हैं ग्राहक | और लोग दूर दूर से खाने आते हैं|
मुम्बई में मटका बर्यानी एक रेहडी पर बड़े बड़े पतीलों में ला कर सडक के किनारे बेचता है – वह बिरियानि स्पेशलिस्ट है कि ना!
सैंकड़ों मिसालें हैं, आप भी जानते हैं, आप अपने इर्दगिर्द नजर दौड़ा कर देखिये, तो ऐसे कई स्पेशलिस्ट आप को दिख जायेंगे|
हम ढाबों की बात नहीं कर रहे, वहां तो आप को बीसियों डिश मिल जायेंगी| सुना हैं, मुम्बई में एक जगह भारत की सब से बड़ी थाली ’दारा सिंह थाली’ जिस में ४४ प्रकार की वैज और नॉन-वैज डिश होती हैं, मिलती है, लेकिन यहाँ हम उस की बात नहीं कर रहे, हम तो केवल आमतौर पर एक आइटम बेचने /बनाने वालों की बात कर रहे हैं|
शाम को दफ्तर से घर जाते हुए आप बच्चों के लिए फ्रूट ले जाने की सोच रहे हैं तो आप को कई अलग अलग रेहड़ी वालों से पाला पडेग , केले वाले के पास संग्तरे नहीं और संग्तरे वाला आम नहीं बेचता| अमरुद लेने हैं तो दूर बैठे टोकरी वाले के पास जाईये|
मुझे याद है, मुझे बड़ा मज़ा आता था जब मैं हाथ में पत्ते का ‘डूना’ पकडे गोलगप्पे (पानी पूरी) खा रहा होता था| वह भाई चाट आदि नहीं, केवल गोल गप्पे बेचता था और हमारे मोहल्ले में रेहड़ी ले कर आता था| एक समय में ५,6 लोगों को वह फटा फट एक के बाद एक गोल गप्पा, जो मजेदार पानी में डुबकी लगा कर देता था और साथ में गिनती भी रखता था कि अब चार हो गये या 6 हो गये|आज कल तो जो प्लेट में एक साथ इकठे रख देते हैं, वहां खाने का कोई मज़ा ही नहीं आता| अभी भी सड़क के किनारे, लाइन में खड़े हो कर गोलगप्पे खाने का जो स्वाद है, बस कुछ मत पूछो|
दिल्ली, शादी पुर बस डिपो के बाहर एक गंदा नाला होता था, उस के पास शाम को एक आदमी ’खरौड़े’ यानी ’पाए’ बेचता था| खाने वालों की भीड़ देखने वाली होती थी| किसी को कोई चिंता या डर नहीं होता था कि बिलकुल उन के पीछे बदबूदार पानी बह रहा है कि उस से बीमारी लग सकती है|
अच्छा, सच बताइये, आप को वह हलवाई याद नहीं आता जो लस्सी के सिवा कुछ नहीं बेचता था| लस्सी भी वह जिसे वह हाथों से बिलो बिलो कर पीतल के लम्बे गिलास में डाल, उस के ऊपर मलाई की तह और फिर चीनी का छिडकाव कर आप को देता था| मैं तो नहीं भूला अभी तक!
ऐसे ही सिर्फ ‘सरसों का साग और मक्की की रोटी’- इसे हम ‘सिंगल आइटम’ ही गिनेंगे, क्योंकि एक का दूसरे के बिना वजूद ही नहीं है| ऐसे ही अमृतसर में केवल ’कुलचे वाले’ मिल जायेंगे, कि लोग दूर दूर से कारों में खाने के लिए जायेंगे|
अच्छा और, क्या आप भुला पायेंगे उस ‘मच्छी फ्राई’ वाले सरदार जी को, जो अपनी रेहडी ठीक देसी शराब के ठेके के बाहर लगा ग्राहकों को जल्दी, जल्दी निपटाने में जैट की स्पीड से काम करता है| पहले वह एक तराजू में पीस तोल कर फिर छोटे छोटे टुकड़े कर गर्म तेल की कडाही में डाल कर, तलता था, फिर मसाला और नीबू डाल कर देता था|
ऐसे बहुत से स्पेशलिस्ट सारा सारा दिन काम नहीं करते हैं, वे सुबह सुबह या शाम को, एक फिक्स टाइम पर आते हैं और जितना माल बना होता है, बेच कर चलते बनते हैं|
आप बाज़ार में चल रहे हैं और अचानक आप की चप्पल टूट जाती है, तो आप क्या करते हैं, एकदम इधर उधर देख एक कोने में बैठे चप्पल रिपेयर करने वाले के पास पहुँच टांका लगवा, आगे चल देते हैं|
आपने सड़क के किनारे, किसी फूटपाथ पर अक्सर देखा होगा कि कोई अपने बाल कटवा रहा है और कोई शेव बनवा रहा होता है|
भारत में ऐसे निराले काम करने वाले बहुत मिलेंगे|
सर्दियों में मूंगफली की रेहडी वाला, गर्मियों में बाइसिकल पर बर्फ के गोले वाला या सिर पे टोकरी रखे काले जामुन वाला या भेल पूरी वाला– सब ही तो अपने अपने फील्ड के स्पेशलिस्ट हैं|
चलिए, एक दूसरी तरह के स्पेशलिस्ट से मिलते हैं, जो आम तौर पर इंटरस्टेट बस अड्डों पर सक्रीय होते हैं|
पानीपत की बात है, दो भाई होते थे; उन में से एक ‘आई स्पेशलिस्ट’ बन आखों का सुरमा बेचता था| एक छोटी शीशी दो आने में| आँखों से पानी बहता हो, धुंधला दिखाई देता हो, काला मोतिया हो, सब उस सुरमे से ठीक ! सैंपल के तौर पर, दो चार बुजुर्गों की आँखों में एक एक ‘सिलाई’ डाल कई शीशियाँ बेच लेता था | उस का दूसरा भाई ’डेंटल स्पेशलिस्ट’ था, जो दांतों का मंजन बेचता था |कई लोगों के हिलते हुए दांत, वह हाथ की दो उँगलियों की सहायता से झट से निकल देता था| मैं ने खुद अपनी आँखों से देखा है|
छोटे शहरों में कमज़ोर आंखों के लिए किसी Optometrist या आँखों के डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं है, बस साथ वाली दुकान पर रेडीमेड चश्में ही चश्में | आप तीन चार ट्राई कीजिये, कोई न कोई तो फिट आ जाएगा क्योंकि बुढापे में नंबर ज़्यादा इधर उधर नहीं होते|
अच्छा, याद है आप को वह दिल्ली लालकिले के बाहर जड़ी – बूटियाँ और ‘सांडे का तेल’ बेचने वाला, जो आमतौर पर पुरुषों की कुछ ख़ास बीमारियों का बड़ी लच्छेदार भाषा में वर्णन करता था|उस की इन मजेदार बातें को सुनने वाले तमाशबीन ज़्यादा होते थे और खरीदने वाले कम|
उस के पड़ोस में एक ‘फ्यूचर एक्सपर्ट’अपने तोते के साथ बैठा होता था, जिसे वह’मियाँ मिठू’ के नाम से बुलाता था | तोता, पास रखे हुए कार्ड्स में से एक कार्ड उठाता, जिसे ज्योत्षी महाराज पढ़कर सामने बैठे व्यक्ति का भविष्य अपनी फीस लेने के बाद बताते |
थोड़ी दूरी पर एक समोसे वाला अपना स्टाल लगा कर पुराने अखबार के पर्चों पर थोड़ी इमली की चटनी डाल कर ग्राहकों को निपटा रहा होता था|
ऐसे स्पेशलिस्ट भला और कहाँ मिलेंगे?
भारत की बात ही कुछ और है|
कर
Short URL: https://indiandownunder.com.au/?p=17266