नाम में क्या रखा है ?    ….संत राम बजाज

शेक्सपीयर  (Shakespeare) का नाम किस ने नहीं सुना? उन्हीं का कहना है कि ‘वट इज़  इन ए नेम’ यानी नाम में क्या रखा है? गुलाब को यदि गुलाब न कह कोई दूसरा नाम देंगे तो क्या उस की खुशबू गुलाब जैसी नहीं रहेगी ?

अब देखिये, यदि यही बात मैं ने कही  होती  तो क्या आप लोग इतनी जल्दी मान लेते? नहीं ना? कहने का मतलब है कि मेरे हिसाब से नाम में बहुत कुछ है| जो बात किसी बड़े और मशहूर नाम से जुड़ी हो उसे हम लोग बिना प्रश्न किये मान लेते हैं |

शेक्सपीयर महोदय की बात में  दम  है या  नहीं, सोचना चाहिए | मैं तो यह कहूँगा कि नाम का बहुत बोल बाला है|

आईये  देखें !

राहुल के साथ गांधी न लगा हो तो उन्हें शायद क्लर्क की जॉब भी न मिल पाए परन्तु अब वह भारत के प्रधान मंत्री के पद के दावेदार हैं| अर्थात राहुल  कुछ  भी नहीं, ‘राहुल गांधी’ सब कुछ | यह बात कई और पोलिटिशियन के बारे में कही जा सकती है|

फ़िल्मी सितारों की बात करें तो निर्माता  शाहरुख खान, सलमान खान,  अमिताभ बच्चन  आदि नामों पर करोड़ों  लगाने को तैयार हैं | माधुरी दीक्षत का नाम सुन अभी भी लोगों के दिलों की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं | इन सितारों के शोज़ में हजारों लाखों की संख्या में महंगी महंगी टिकट लेने को उत्सुक हो जाते हैं, जबकि लोकल आर्टिस्ट को देखने या सुनने में २०,२५ डालर भी चुभते  हैं| कुछ समय पहले सिडनी में इन सितारों का शो हुआ, तीन घंटे लेट, फिर भी लोग बाहर लाइन में खड़े रहे और चूं तक नहीं की|  देखी आप ने नाम की करामात!

और शेक्सपीयर साहिब कहते है कि नाम में क्या रखा है|

आजकल  हर चीज़  खरीदते समय लोग  ब्रेंड को देखते हैं, उस के नाम पर जाते हैं, क्वालिटी पर नहीं|

और सुनिये, क्या भारत में किसी बच्चे का नाम  ‘रावण’ सुना है आप ने? उस का नाम ही लोगों के दिलों में घृणा  पैदा कर देता है, तो फिर हम  कैसे मान लें कि नाम में कुछ नहीं रखा है?

एक और  उदाहरण आज  के युग का है, ‘हिटलर’ – सुनते ही गुस्सा आने लगता है |

शायद मैं  शेक्सपीयर जी की बात को गलत समझ रहा हूँ, क्योंकि यदि  रावण की माँ उस का नाम  रावण न रखती तो क्या वह फिर भी यही दुष्कर्म करता? पता नहीं|  जैसे आजकल के आतंकवादी को ‘अलकायदा’ का नाम दें या तालिबान, वे तो आतंकवादी ही रहेंगे ना|

बड़ा विवाद का विषय बनता लगता है | नाम बदलने से गुण नहीं बदलते या बदल जाते हैं|

देखिये  भगवान तो एक है ना? सब मानते हैं, परन्तु हर धर्म ने उसे अपना नाम दिया है – अल्लाह, ईश्वर, गॉड आदि और फिर वह अलग अलग रूप में देखते हैं उसे, अर्थात नाम बदलने से भगवान तक बदल जाता है | लोग आपस में  लड़ते झगड़ते हैं| आजकल भारत में धर्म के नाम पर कितनी राजनीति चल रही है!

रोमन कैथोलिक इसाईयों के महागुरु ‘पोप’ जूंही चुने जाते है उन्हें नया नाम दिया जाता है और एकदम उन के रख रखाव और व्यवहार में बदलाव आ जाता है | ऐसा ही दूसरे धर्मों के मुखियों  में भी होता है|

नाम एक बहुत ज़बरदस्त पहचान है, इसलिए एक बदलेगा तो दूसरे के बदलने की पूरी सम्भावना है| नाम में बहुत कुछ रखा है|

अब जैसे बच्चों का नाम रखते समय बड़ी श्रधा से पंडित जी को पहला अक्षर निकालने के लिये बुलाया जाता है |

अब यहाँ भी मैं  कंफ्यूज़्ड हूँ  क्योंकि राम और रावण दोनों के नाम ‘र’ से शुरू होते हैं और ऐसे ही  कृष्ण और कंस  के  ‘क’ से|

लोग नाम बदलदते क्यों हैं ? मशहूर फ़िल्मी सितारे दलीप कुमार यूसफ खान हुआ करते थे और मीना कुमारी का असली नाम था ‘महजबीं बानो’ और मधुबाला थीं ‘मुमताज़ जहाँ’ | नए नामों से उन्होंने कितनी ख्याति पाई|

मेरे एक मित्र हैं , नाम – छज्जू मल, बेचारे को नौकरी तक मिलनी मुश्किल हो गई थी, लोग छज्जू  नाम की खिल्ली उड़ाते थे | नाम  में थोड़ी बदली की और वह बन गये , ‘सी .एम . पांडे’,  अब लोग इज्ज़त से नाम लेते हैं|

और सुनिये, भारत में शहरों के नाम तक बदले जा रहे हैं| ‘चिन्नई’  कभी ‘मद्रास’ के नाम से जाना जाता था जबकि ‘मुम्बई’ को  ‘बाम्बे’  या ’बम्बई’ कहते थे | ‘इलाहबाद’ अब ‘प्रयागराज’ कहलाता है| उत्तर प्रदेश का ‘झाँसी रेलवे स्टेशन’ अब ‘वीरांगना लक्ष्मीबाई रेलवे स्टेशन’ के नाम से जाना जाएगा।

ऐसी और भी कई मिसालें हैं|

नाम बदलने से क्या इन शहरों के बारे में लोगों के मन में कोई बदलाव आया , मुझे तो नहीं लगता|

नाम को आओ एक और पहलू से देखें|

कल एक पुरानी हिन्दी फिल्म देख रहा था, जिस में हीरोइन के पिता हीरोइन  की माँ को  “अरी ओ सरला की माँ ” कह कर बुलाते हैं, और एक और परिवार में पत्नी अपने  पति को “मुन्नी के बापू” कह कर सम्बोधित करती है, तो अचानक ख्याल आया कि हमारे भारत में कितने  पति पत्नी, एक  दुसरे का नाम न लेकर  बुलाते हैं या बुलाते थे|

खास तौर पर औरतें घर के के अंदर और घर के बाहर भी पति का नाम लेने में शर्माती थीं| यहाँ तक कि स्कूलों और अस्पतालों  में बच्चों के बाप का नाम लिखवाने  में दूसरों की मदद लेनी पड़ती थी या फिर इशारों से काम चलाना पड़ता था| ऐसी स्थिति में कई बार काफी मुश्किल पैदा हो जाती थी | जैसे  पति का नाम चाँद राम है तो कहेंगी, “वह जो रात को आसमान में निकलता है”, और यदि दूसरे ने कहा कि तारा, तो कहेंगी, “नहीं, वह जो सब से बड़ा होता है”- खैर किसी न किसी तरह समझाने में सफल हो ही जाती थीं| या यदि बहुत ही मजबूरी हुई  तो पूछने वाले के कान में आहिस्ता से कह देंगी  कि जैसे कोई पाप कर रही हों|

हमारे एक मित्र का नाम है जगदीश चन्द्र और उन की पत्नी बड़ी धार्मिक और  बहुत ही पुराने विचारों की हैं और उन्हें प्रतिदिन, ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती करते  समय बड़ी समस्या का सामना करना  पड़ता था, जिस का हल उनहोंने निकाल लिया| उन के  बेटे का नाम था ‘यशपाल  “तो वह जल्दी में और धीमी आवाज़ में , ‘ओम जय यश दा पापा हरे’ कह कर काम चला लेती थीं| परन्तु लोगों के मजाक उड़ाने पर उन्हों ने अब ‘ओम जय नारायण हरे’ कहना शुरू कर दिया है|

बहुत सारे घरों में  एक दूसरे का नाम लिये बिना ही काम चलाने के कई आसान तरीक़े  हैं | जैसे ….

“ मैं केह्या जी”…….“ अजी सुनते हो”…….“कित्थे  हो”………“अरी  ओ बेगम”……“गल सुनो जी”

“भाग्यवाने” ….. और यदि बाहर के लोग हैं या घर के बाहर है तो,

.“कोहली साहिब” ……….“सरदार जी”…….“ शर्मा जी”……..“ अरोरा साहिब”……..“डॉक्टर साहिब”……  

से काम चलाया जाता है|

यह समस्या बड़ी उम्र  या पुराने विचारों के लोगों में है, कुछ तो कारण रहा होगा!

लेकिन समय के साथ सब बदल रहा है |

नई पीढ़ी के लोगों को ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीँ है  और कोई ‘फोर्मेलिटी’ की ज़रूरत नहीं है| वे तो सीधे नाम ले कर बुला लेते हैं|  

“हरीश इधर आना” ……  “अजय, आज क्या प्रोग्राम है”…… “रेखा, मेरी कमीज़ तो लाना”.

या फिर सब के ‘पैट’ नाम हैं –    “पप्पू, बबली, मिंटू, सन्नी, रानी”  आदि आदि  …

ज़रा माडर्न किस्म के लोग तो , “डीयर, डॉर्लिंग, स्वीटहार्ट , यहाँ तक कि ‘यार’  कह कर बुलाते हैं |   

मियां बीवी के नामों के अतिरिक्त  दूसरे  रिश्तों के नामों में भी परिवर्तन आ रहे हैं |

अब चाचा, ताया, मामा, फूफा  की  जगह ‘अंकल जी’ ने ले ली है, बुआ, मौसी, ताई, चाची  आदि  ‘आंटी जी” बन गई हैं|

यह इंग्लिश-हिन्दी मिश्रण  अजीब  लगता है परन्तु कम से कम ‘जी’  रिश्तों में इज्ज़त का आभास  तो दिलाता है|

‘शेक्सपीयर जी’ का भी शायद यही मतलब रहा हो कि ’चाचा’ को चाहे ‘चाचू’ कहो, अंकल कहो, या अंकल जी कहो,

चाचा तो चाचा ही रहेगा और रिश्ता भी वही|

देखिये ना मैं भी ‘शेक्सपीयर जी’ के पक्ष में बोलने लगा |

भई! इतने बड़े ‘धाँसू’ लेखक की बात तो माननी पड़ेगी ही| अर्थात उन के नाम ने प्रभावित  कर दिया |
अर्थात ‘नाम में क्या रखा है’ … वह भी ठीक  हैं और ‘नाम ही सब कुछ है’ – मैं भी ठीक हूँ|

है ना, चक्कर वाली बात! जिसे अंग्रेज़ी में, ‘कैच २२’ –  ‘Catch 22’  कहते हैं !


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