ख़ुशी की तलाश ….  संतराम बजाज

हम सब मारे मारे फिरते हैं, ख़ुशी को ढूँढ़ने में| मंदिरों,मस्जिदों, गुरुद्वारों और गिरिजाघरों में सिर झुकाते हैं, बाबाओं के डेरों परजा माथा रगड़ते हैं | क्या ख़ुशी मिलती है? शायद पल भर के लिए हम सैंकड़ों और हज़ारों लोगों की उपस्थति देख, उन्हें झूम झूम कर नाचते देख सुरक्षित महसूस कर, उसे ही ख़ुशी समझ लेते हैं और जूँ ही वहां से निकले फिर चिंताओं में घिर दुखी हो जाते हैं| ख़ुशी तो आप के अन्दर छिपी है, जब चाहो बाहर निकालिये| प्रीत दिन के छोटे छोटे कामों में, या छोटी छोटी बातों में ख़ुशी मिल जायेगी| आप बहुत बड़े चक्करों में मत पड़िए|

किसी बच्चे को खिलौना मिलता है, झट से उस के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और उस की इस ख़ुशी में आप भी शामिल हो कर खुश हो जाते हैं| बच्चा तितली के पीछे भागता है, पकड़ ले तो  तत्काल खुश हो जाता है| बच्चों की मुस्कराहट ही असली ख़ुशी है|

तत्काल (Instant) ख़ुशी तो ‘टू मिनट नूडल्स’ की तरह है| झट से बनाई और फटाफट खाई|

अच्छा, जब आप कोई फिल्म देख रहे होते हैं और हीरो की पिटाई देख आप कितने दुखी होते हैं, और जूँही पासा पलटता है और विलेन की ‘धुलाई’ शुरू होती है, खुशियों का सैलाब आ जाता है हाल में, अर्थात आप को ख़ुशी की प्राप्ति होती है|

ठीक कहा ना मैंने?

देखा, आप ने ख़ुशी के लिए आप को किसी बाबा के पास जाने की ज़रुरत नहीं, बस ‘सलमान खान’ या ‘अक्षय कुमार’ या ‘अजय देवगन’ की फिल्म देख लीजिये और खुशियाँ बटोरिये|

ख़ुशी, मन का एक भाव ही तो है जो महसूस की जाती है|  आप क्रिकेट मैच देख रहे हैं, विराट कोहली ने छक्का लगाया और आप ख़ुशी से अपनी सीट से कूद कर झूमने लगते हैं, या बूमरा की गेंद पर इंग्लेंड का कैप्टन आउट हुआ तो आप फिर जोश में आ जाते हैं|

परन्तु यह तो नहीं हुआ होगा कि आप की टीम हार जाए और आप फिर भी खुश हैं|

कभी कभी ऐसा भी होता है| उदाहरण के तौर पर अभी अभी के भारत के कुछ प्रान्तों के चुनावों के नतीजों को लीजिये| पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह हार गये, क्या आप ने उन्हें उदास या दुखी देखा? वह तो गाना गा रहे थे | क्यों भला? क्योंकि उन के सब से बड़े दुश्मन नवजोत सिंह सिध्दू भी बुरी तरह से हार गये थे| उन्होंने ने चुनाव से पहले कहा था कि ज़िन्दगी की सब से बड़ी ख़ुशी उन्हें सिध्दू के हारने पर मिलेगी| जब ज़िन्दगी का मकसद पूरा हो जाए, तो इस से बढ़ कर और क्या ख़ुशी हो सकती है?

और दूसरी ऐसी ही मिसाल, भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान और विरोधी दलों के बीच हुई लड़ाई की| इमरान खान ने ‘रिवेरस-स्विंग’ बोलिंग से उन की स्कीमें फेल करने की कोशिश की तो विरोधियों ने भी उन्हें ’क्लीन बोल्ड’ करके ही दम लिया, भले ही उन्हें सुप्रीम कोर्ट की सहायता लेनी पडी| नवाज़ शरीफ के छोटे भाई शाहबाज़ शरीफ प्रधान मंत्री बन गये| कितने लोगों को ख़ुशी मिली कि अब पाकिस्तान में ‘शरीफों’ का राज फिर से हो गया है, बेशक उन के विरुध्द ‘मनी लौन्ड़ेरिंग’ के केस चल रहे हैं| लेकिन ख़ुशी इस बात की है कि इमरान खान की विकेट बुरी तरह से टूट गयी और उसे उसकी बीवी बुशरा बेगम का जादू टूना भी बचा नहीं पाया|  

कहने का मतलब यह है कि अपनी जीत पर तो ख़ुशी होती ही है, पर दुश्मन की हार पर जो ख़ुशी मिलती है उस का मज़ा कुछ और ही है| उधर दिल की भड़ास निकली और इधर ख़ुशी ने प्रवेश किया!

अच्छा, भारत में राहुल गांधी की हर बात का मज़ाक़ उड़ा कर कितने लोग खुश होते हैं, जबकि मोदी विरोधी भी कुछ कम नहीं हैं इस मामले में| ‘नहले पे दहला’ वाली बात है| दोनों धड़े खुश!     

चलिए छोडिये ये स्यास्तदानों की बातें| कुछ और भिन्न भिन्न प्रकार की खुशियों की बात करते हैं| 

आप बस में सफर कर रहे हैं और बाथरूम जाना चाहते हैं, परन्तु बस कहाँ रुकेगी कुछ पता नहीं और आप के अंदर प्रेशर बढ़ता जाता है, आप की क्या हालत हो रही है यह तो आप ही जानते हैं, कि अचानक बस एक पेट्रोल पंप पर रुकती है और आप तीर की तरह निकल कर शौचालय की ओर रेस लगाते हैं| ड्राईवर में आप को भगवान् दिखने लगता है, उस समय की ख़ुशी आप की सब से बड़ी ख़ुशी बन जाती है|

आप को ख़ुशी चाहिए ना! सिंपल – अपने फ्रिज पर बॉलीवुड की प्रसिध्द हास्य कलाकार ‘टुन टुन’ की फोटो लगा लें, देखिये और हंसिये, या फिर ‘जोहनी वाकर’ और महमूद की|

ख़ुशी कोई बाज़ार में बिकने वाली चीज़ नहीं है कि पैसे वाला लेकर आ जाएगा और गरीब उस से वंचित रहेगा|

कई बार देखा होगा आपने कि गरीब मजदूर रात को थके हारे होकर भी एक साथ बैठ कितने खुश हो रहे होते हैं, सस्ता दारू पीते हैं, गीत गाते है, मस्ती करते हैं जबकि उसी बिल्डिंग का मालिक अपनी कोठी में अकेला बैठा, उदासी दूर करने के लिए अंग्रेज़ी दारू (व्हिस्की) पी कर भी दुखी होता है, क्योंकि उसे इनकम-टैक्स वालों की रेड का डर सताता रहता है| 

ज़रूरी नहीं कि लखनवी ‘नवाबी टुंडा कबाब’ या ‘हैदराबादी शाही बर्यानी’ खाने में ख़ुशी मिलती है, जो ख़ुशी ‘मक्की की रोटी और सरसों का साग’ खाने में मिलती है, उस का जवाब नहीं, किसी भी पंजाबी से पूछ कर देखिये|  

   

मैं अपनी बात करूं तो, आम के अचार और प्याज के साथ रोटी खाने में मुझे बहुत आनन्द मिलता है| आत्मा तृप्त हो जाती है|

कहने का मतलब यह है कि ख़ुशी केवल पैसा होने से और महंगे पकवान खाने से नहीं आती ,बल्कि मन के अन्दर से आती है|

मेरे एक मित्र हैं, जिन्हें सिगरेट पीने की बुरी (?) लत है| एक रात को उन की सिगरेट समाप्त हो गयी और रात को अड़ोस पड़ोस की सब दुकाने बंद, क्या करें? बहुत दुखी! थोड़ी दूरी पर एक पान की दूकान थी, शायद खुली हो, सोच कर पहुंचे, परन्तु वह भी बंद थी| इधर उधर नजर घुमाई तो ज़मीन पर पड़ी एक डिब्बी दिखाई पडी, भाग कर उठाई, पर खाली थी, परन्तु उस के पास ही सिगरेटों के कई छोटे छोटे अध्-पिये टुकड़े पड़े थे| अब भाई की यह हालत थी कि जैसे कोई खज़ाना मिल गया हो| ख़ुशी से हाथ कांपने लगे| एक एक टुकड़े को उठा उस खाली डिब्बी में डाला और एक को रूमाल से पोंछ जेब से लाइटर निकाल सुलगाया और जल्दी जल्दी दो एक कश मारे| उस के कथनानुसार जो ख़ुशी उसे उस समय मिली, उस का कोई मुकाबला नहीं|

पर मेरे भाई, ख़ुशी भी तो आती जाती रहती है| हम तो ख़ुशी के कुछ क्षणों की बात कर रहे हैं ना!

आप यह फल्स्फेदानों की बड़ी बड़ी बातों में ज़्यादा न उलझें कि ‘ऊंचा सोचें, भविष्य की चिंता न करें, आत्मविश्वास पैदा करें, सत्य का साथ दें, आदि आदि…, तो ख़ुशी मिलेगी| ”

आप को याद होगा कि जब आप फिल्म देखने जाते थे और ‘हाउस फुल’ का बोर्ड देख निराश हो जाते थे| तो अचानक ‘दो का पांच’ या ‘दस का बीस’ वाले ब्लैक में टिकट बेचने वाले की आवाज़ से आशा की किरन देख आप के चेहरे पर ख़ुशी नहीं आ जाती थी क्या? उस समय आप यह नहीं सोचते कि यह भाई ग़लत काम कर रहा है और आप उस का साथ दे रहे हैं|

यह बात रिश्वत (घूस) लेने वाले कर्मचारी और घूस  देने वाले पर भी लागू होती है| लेने वाला खुश है – माल आ रहा है,  देने वाला भी खुश, क्योंकि उस का काम दूसरों से पहले हो जाता है| दोनों मिलजुल कर ख़ुशी साझी करते हैं|

ख़ुशी की और कई मिसालें पेश कर सकता हूँ|  

कोविड-19 के समय शुरू शुरू में टॉयलेट-पेपर की रेस में जिसे पूरा रोल मिल जाता था, उसकी ख़ुशी देखने लाईक होती थी| वह हंसता हुआ, सब को  चिड़ाता हुआ छाती फैला कर चल रहा होता था| मेरे एक पड़ोसी ने तो टॉयलेट पेपर खरीद कर आधा गैराज भर लिया था और अपनी कार को बाहर पार्क करने लगा था|

ख़ुशी कई बार थोड़ी सी मेहनत करके पैदा भी की जा सकती है| जैसे संयुक्त परिवारों में देवरानी ने दाल बनाई और जेठानी ने आँख बचाकर, उस में एक मुठी नमक और डाल दिया| अब खाते समय जब परिवार की झिडकियां देवरानी को मिलीं उस से भला ख़ुशी किसे मिली, बताने की ज़रुरत नहीं है| यह बात अलग है कि देवरानी के पलटवार से जेठानी जी, कब तक बच पाएंगी, सोचने वाली बात है|

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