माँ, तेरी सूरत से अलग… संतराम बजाज

माँ तो हर एक की होती है और हर माँ अपने बच्चों से प्यार करती है|चोट बच्चे को लगे तो पीड़ा माँ ही को होती है| खुद भूखी रह कर भी बच्चे के खाने की चिंता माँ को होती है|

आप ने देखा होगा जब छोटा बच्चा गिर जाए और थोड़ी सी चोट पर रोने लगे तो वह कैसे चोट वाली जगह को फूक मार मार कर झट से बच्चे को चुप करा देती है, या फिर ‘झूठ  मूठ’ का नाटक करेगी कि ’लो तुम ने वह चींटी  मार दी’ |

हर माँ कलाकार होती है, वह ‘इन्द्र्धनुष ‘(Rainbow) की तरह बच्चों की खुशियों के लिए कई रंग भर देती है|

संसार आगे चल ही नहीं सकता था यदि माँ के दिल में ऐसा प्यार न भरा होता|

हर एक बच्चा  अपनी माँ को दूसरों से ऊंचा समझता है, समझना भी चाहिए, क्योंकि हर  माँ  ‘यूनीक’-अनूठी  होती है| उस का तो सारा जीवन ही बलिदान का है, बच्चों की भलाई का है|

 लोग गलत कहते हैं कि “बिना रोये माँ बच्चे को दूध नहीं देती”, अरे! माँ को तो पहले ही पता चल जाता है कि बच्चे को कब भूख लगती है| यहां तक कि  बच्चे जब बड़े होकर स्वयं माँ बाप बन जाते हैं, तब भी उन की चिंता उनकी माँ को सताती रहती है |

माँ को पहला शिक्षक कहा गया है, बच्चा बोलना भी तो उसी से ही सीखता है|

एक फ़िल्मी गीत के बोल याद आ रहे हैं  ,जिन में माँ की स्तुति बहुत ही प्यारे ढंग से की गयी है| माँ की तुलना भगवान् से की गयी है|

उस को नहीं देखा हमने कभी, पर इसकी ज़रूरत क्या होगी,

 ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी?”

यह  साल में एक दिन ‘मदर डे’ मना कर बच्चे समझते हैं कि हम ने बहुत बड़ा काम कर दिया| माँ तो 24/7 काम करती है

माँ की बातें तो उन के जाने के बाद यादें बन कर रह जाती हैं|

मैं अपनी माँ की बात करूं तो, विशवास नहीं होता कि उन में इतनी हिम्मत और इतना धेर्य कहाँ से आता था| क्या क्या नहीं किया उन्होंने हमारे लिए?

जब भारत का विभाजन हुआ तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पडा हम पर, परन्तु उन्होंने हर प्रकार की समस्याओं को झेलते हुए सारे परिवार को संभाले रखा|

अपनी समस्याओं के  होते हुए भी वह सब की सहायता करती थीं| हमारे गाँव में न तो स्कूल था और न ही कोई वैद्य हकीम | मैं देखता था कि  औरतें अपने बच्चों की छोटी मोटी बीमारियों के लिए मेरी माँ के पास  आया करती थीं| जैसे बच्चे के पेट में ‘मरोड़’ है या दूध नहीं पीता है | यहां तक कि उस की ‘आँखें आ गई’ हैं, अर्थात दुःख रही हैं और सूज सी गयी हैं| मुझे याद है, आँख की  पुतली को उलटा कर उन पपोटों पर जब वह सुर्मा लगाती थीं तो बच्चों की चीखें निकल जाती थीं| वह फिर बंद आँख के ऊपर दूध की मलाई रख रूई का फोहा लगा, पट्टी बांध देती थीं | ऐसा तीन चार दिन  करने के बाद आँखें बिलकुल ठीक हो जाती थीं|

किसी का गला खराब है  और खांसी आ रही हो, तो बड़ा सीधा इलाज – देसी घी ज़रा नीम गर्म करके, उस से  गले की  और कानों के नीचे की हल्की हल्की मालिश कर देने से काफी आराम मिलता था|

या यदि किसी को चोट लग गयी है तो झट से दूध गर्म कर और हल्दी का चमच्च बच्चे को पिला देती और साथ में ईंट गर्म कर कपडे में लपेट कर उस जगह को हल्की हल्की ’टकोर’ कर दर्द  को कम कर देती थीं|

 गाँव में फकीर लोग  घरों में मांगने आते थे| लोग उन्हें  आटा, दाल या अनाज देते थे या फिर रोटी आदि|

 कई तो ‘frequent flyers’ की तरह हर दुसरे दिन आ जाते थे| मेरी माँ किसी को खाली हाथ नहीं लौटाती थी, बल्कि कुछ बूढ़े कमज़ोर फकीरों को  ड्योढी में बैठा कर पूरा भोजन कराती  थीं और पीने को छाछ भी देती थीं|

मैं कई बार माँ से इस बात पर झगड़ा कर लेता था कि वे लोग मुफ्त की रोटियाँ तोड़ते हैं और कोई काम क्यों नहीं करते| आत्म निर्भर भारत का  विचार, मोदी जी से पहले मेरे दिमाग में आ चुका था|

परन्तु माँ मुझे समझाती कि, “बेटा, ये लोग हमारा नहीं खा रहे बल्कि अपनी किस्मत का खा रहे हैं| और तुम्हें  उन को बुरा भला नहीं कहना चाहिए, पाप लगता है|यदि वे कुछ गलत कर रहे हैं तो वे अपने कर्मों का फल भुगतेंगे, भगवान् सब देख रहा है|”

लेकिन मेरी समझ में यह सब नहीं आता था |

कहा जाता है  कि माँ की डांट में भी प्यार  ही होता था |

एक बात मुझे कई बार याद आती है | रोजाना एक गिलास दूध ज़रूर पीना पड़ता था| जब कभी  जल्दी में दूध पीते हुए थोड़ा बाहर गिर जाता था, तो माँ डांट लगाती थीं कि  “क्या तेरे मुंह में  मोरियाँ (छेद) हैं ?”

कभी कभार थोड़ी पिटाई भी हो जाती थी जब कभी गलत काम किया जैसे  भाई बहनों में झगड़ा या दूसरे बच्चों  के साथ लड़ाई | या फिर जब हम नहाने से कतरा कर भाग जाते थे तो पीछे दौड़ पकड़ कर दो एक झापड़ से ‘मुरम्मत’ हो जाती थी और कुछ लच्छेदार गालियाँ भी मिलतीं| लेकिन वह जो, पंजाबी में कहते हैं कि ‘माँ दी गालियाँ, घयो (घी) दीयां नालियां’- अर्थात माँ की गाली भी घी की तरह होती है|

परन्तु उस के बाद प्यार से पुचकार भी देती थीं, और सब मूड ठीक|

ऐसी होती है माँ!

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