घुटने टेक विश्राम…….. संतराम बजाज
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अब मुझे पूरा विशवास हो गया है कि मेरा नाम संतराम बजाज है और मैं किस वर्ष के कौन से महीने में किस दिन पैदा हुआ था|
आप सोचेंगे कि मुझे क्या हो गया हैं कि मैं ऐसी बहकी बहकी बातें कर रहा हूँ|
तो भई! जब आप से दिन में आठ दस बार यही पूछा जाए कि अपना पूरा नाम और जन्म तिथि बताओ, यहाँ तक कि आप गहरी नींद सो रहे हों और रात के दो बजे हों और, और आप को जगा कर एकदम यह सवाल किया जाए और फिर आप की कलाई पर लगे हुए पट्टे से मैच किया जाए और आप तोते की तरह झट से सब बता दें तो भूलने की गुंजाइश कहाँ रह जाती है|
कहीं आप को गलतफहमी न हो जाए, मैं किसी जेल या डिटेंशन सेंटर की बात नहीं कर रहा हूँ, वहां जाएँ मेरे दुश्मन, मैं तो अस्पताल की बात कर रहा हूँ, जहाँ मैं कुछ दिनों से घुटने टेक-‘विश्राम’ कर रहा हूँ| अस्पताल में नर्सों के लिए यह एक रूटीन काम है|
पिछले कुछ समय से घुटनों में समस्या आ गई थी और चलना बहुत मुश्किल हो रहा था और हम थे कि टाले जा रहे थे| कभी यह तेल कभी वह बाम लगा, काम चला रहे थे|
चाल कभी मतवाली तो कभी बेढंगी – Penguin की चाल की तरह हो गयी थी, यार लोग भी बातें करने लगे थे| हार कर घुटने टेकने ही पड़े अर्थात ऑपरेशन कराना ही पड़ा|
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ऑपरेशन से पहले डर तो बहुत था, परन्तु कुछ महसूस नहीं हुआ क्योंकि पूरी तरह से बेहोश कर दिया गया था|
सर्जिकल वार्ड में आरामदह कमरा, बाथरूम अटेचेड मिल गया, पूरी प्राइवेसी| हाँ सर्दी की उस रात को एक कमी ज़रूर महसूस हुई, कि उन के दिए कम्बल, मुझे तो बेडशीट से ज़्यादा कुछ नहीं लगे| चार पांच जोड़ने पर भी वह घर की रजाई याद आने लगी| दो तीन दिन के पश्चात घर से कम्बल लाने ही पड़े!
अस्पताल में केयर काफी अच्छी है| एक के बाद एक, कई नर्सें आईं | कोई ब्लड प्रेशर चेक कर रही थी तो कोई बॉडी टेम्परेचर| एक गयी दूसरी आई, फिर वही सवाल: “आप का पूरा नाम और डेट ऑफ़ बर्थ|”
कुछ घंटों बाद शिफ्ट बदली, नया ग्रुप आया, नये सिरे से सारी कहानी दुहराई जाती| पक्का कर लिया जाता कि मरीज़ वही है, उस का नाम और नम्बर बदल तो नहीं गये|
कभी कभी गड़बड़ी भी हो जाती थी, जैसे उस ने ‘फुल नेम एंड डेट ऑफ़ बर्थ’ पुछा और नींद में हमने बोल दिया, “फ्लू नहीं knee सर्जरी” है| नर्स हंस कर कहती, “दुबारा बोलो,लव|”
अब यह अलग बात है कि नींद में जागने के बाद झट से दुबारा सोना बहुत मुश्किल हो जाता है| मित्रों के नुस्खे, जिन में उल्टी गिनती गिनना (३०० से शुरू करो, २९७, २९४, २९१…) जिस में दिमाग बोर हो कर आप को सोने देता है, भी फेल हो गयी हैं|
आमतौर पर सब नर्सें हंसमुख और खुश नज़र आती हैं, कई मशीन की तरह बिना कुछ बोले काम करती हैं| नर्सों में कुछ भारतीय, नेपाल, या फीजी मूल की हैं जो हिन्दी में बात करती हैं| कुछ ट्रेंनिग और स्टूडेंट नर्सेज भी आती हैं|
“क्या आप हनुमान भक्त हैं?,” एक ने अचानक सवाल किया|
“तुम्हें कैसे मालूम है?”
“यह आप के पास जो ‘हनुमान चालीसा’ का गुटका रखा हुआ है|”
“और आप नींद में कुछ बुडबडा रहे थे कि ‘जय बजरंगबली, तोड़ दुश्मन की नली’, दूसरी ने कहा|
“अरे, वह तो ऐसे फ़िल्मी डायलाग है|,” मैं ने झेंपते हुए कहा|
“मैं तो गणेश जी की भक्त हूँ|,” उस नेपाली नर्स ने बताया|
“अच्छा!”
मुझे महसूस हुआ, कि अस्पताल में आने पर मैं कुछ ज़्यादा ही ‘धार्मिक’ होने लगा हूँ|
Rehab के लिए physio बहुत ज़रूरी है| दिन में दो बार physio करने के लिए दूसरे कमरे में जाना होता है| मेरी तरह के कई और लोग हैं| कोई एक हाथ में छड़ी लिए हुए है, तो कोई दो डंडों (crutches) के सहारे, या फिर पहियों वाले वाकर के सहारे चल फिर रहे हैं, या चलने की कोशिश कर रहे हैं|
हाथ हिला कर हेलो करो या फिर,
“हाई मेट !”
“हाई”
“कौन सी?”
“लेफ्ट वाली?” दोनों को पता है कि Knee यानी घुटने की बात हो रही है|
“पेन (pain) कैसा है?”
“कंट्रोल में है|”
लेकिन कुछ ‘हिप ’(HIP) की सर्जरी वाले भी हैं|
एक भाई दुखी हो कर बोला कि, “सब मेरी गलती थी| बेडरूम का एक बल्ब फ्यूज हो गया था, मैं सीढ़ी लगा कर बदलने लगा, कई बार पहले भी ऐसा कर चुका था, परन्तु वह सीढ़ी ज़रा सी हिल गयी और मैं गिर पडा और हिप क्रैक हो गयी|”
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फिज़िओ कराने वाले आकर सब को बुला अलग अलग एक्सरसाइज करने को कहते हैं, कुछ ग्रुप में कराते हैं|
आसान नहीं लगता, तकलीफ तो होगी ही, पर वह जो कहते हैं, तैरने के लिए पानी में तो आप को ही उतरना है| लेकिन है काफी कठिन|
ऑपरेशन तो मुश्किल था ही, पर उस में आप का कोई हाथ नहीं है, आप तो टेबल पर बेहोश पड़े हुए हैं, क्या काटा-पीटी होती रही, आप को कुछ पता ही नहीं चलता, लेकिन physio की जो तकलीफ होती है, वह तो आप को ही झेलनी पड़ती है|
क्रचज़(Crutches) पर बैलेंस करना, साइकिल पेड्लिंग, दुखती टांग को ऊपर नीचे करना, स्टेप पर उतरना चढ़ना अब क्या क्या बताऊँ, इसी तरह की अनेक कलाबाजियां सीखनी और करनी पड़ती है, तब कहीं जाकर चलने फिरने के काबिल होंगे| सब लोग बिना प्रश्न किये जुट जाते हैं|
अस्पताल में वैसे माहौल अच्छा है, शान्ति है|
अकेलापन थोड़ा महसूस होने लगा है| अब पता चला कि मिलने आने वाले visitors की कितनी importance होती है| मैं अपने उन मित्रों का आभारी हूँ जो इतनी दूरी से ट्रेन और बस से आये या फिर समय समय पर फोन पर बात की|
परिवार के लोग मेरे साथ पूरी तरह से खड़े हैं| उन के बिना तो यह कुछ भी संभव नहीं था| इस से बड़ी हिम्मत बनी हुई है| मनोबल बना रहता है|
अस्पताल का खाना अच्छा है, पोष्टिक है, हर तरह से हेल्दी है, इतनी वैरायटी है कि Menu पढ़ कर दिमाग चकरा जाए, परन्तु हम क्या करें जो हमारी जुबान को परांठे, बिरियानी और ऐसी ही चटपटी चीज़ें खाने की आदत सी पडी हुई है, यह अस्पताल वालों को कैसे समझाएं? इसलिए थोड़ा बहुत घर से बेटियाँ बना कर ले आती हैं|
अभी चलना तो दूर की बात, बिस्तर से उठना भी मुश्किल है| Crutches के सहारे चलना सीख लिया है| इतना आसान नहीं है, ख़ास तौर पर बाथरूम जाना तो जैसे किसी जंग पर जाना हो|
अपनी हालत देख कर कभी रोना आता है तो कभी हंसी| फिर से बच्चे बन गये हैं, हर चीज़ के लिए दूसरों पर निर्भर! बच्चों को पता नहीं होता, पर हमें इस ‘निर्भरता’ का पूरा एहसास है, इसलिए कष्ट ज़्यादा होता है|
बड़ी मुश्किल से नींद आई है, एक सुंदर सा सपना भी आने लगा है कि ब्लड प्रेशर लेने वाली नर्स आ जगाती है|
“आप बार बार क्यों तंग करने आ जाती हैं?,”मैं दुखी और घबराहट में नर्स से पूछता हूँ|
“हमारी ड्यूटी है|”
“यह कैसी ड्यूटी है, कम से कम रात को तो सोने दो|”
वह कुछ जवाब नहीं देती, पर मुझे ऐसा लगा कि कह रही हो, कि “यदि नहीं आये और कुछ हो गया तो आप लोग ही हमें फांसी पर लटकाने की बातें करोगे कि क्यों नहीं हम ने चेक किया पेशेंट सांस भी ले रहा है कि नहीं, और कि हम ड्यूटी पर सोते रहे|”
और मुझे अपनी बदतमीजी पर गुस्सा आने लगता है, वे बेचारी पहले से Overworked और underpaid हैं फिर भी पूरी ज़िम्मेदारे से अपना काम कर रही हैं| सच कहें तो अस्पताल नर्सों के सहारे ही चल रहे हैं|मरीजों की देखभाल इन के बिना हो नहीं सकती| डॉक्टर्स तो कॉल पर होते हैं या कभी कभी विजिट करते हैं|
मेरा गुस्सा तरस, ग्लानी और दया में बदल जाता है और मैं उसे ‘वैरी सॉरी’ कहता हूँ और आँखें मूँद कर फिर से सपनों की दुनिया में खो जाने की कोशिश करने लगता हूँ|
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