दो सत्य कथाएं : जीने का अनोखा अंदाज़

दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार नेल्सन मंडेला अपने सुरक्षकर्मियों के साथ एक रेस्त्रां में खाना खाने गए । सबने अपनी अपनी पसंद का खाना आर्डर किया और खाना आने का इंतज़ार करने लगे। उसी समय मंडेला की सीट के सामने वाली सीट पर एक व्यक्ति अपने खाने का इंतज़ार कर रहा था। मंडेला ने अपने सुरक्षकर्मी से कहा कि उसे भी अपनी टेबल पर बुला लो। ऐसा ही हुआ। खाना आने के बाद सभी खाने लगे। वह आदमी भी अपना खाना खाने लगा, पर उसके हाथ कहते हुए कांप रहे थे। खाना समाप्त कर वह आदमी सिर झुका रेस्त्रां के बाहर निकल गया। उस आदमी के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारी ने मंडेला से कहा, “वह व्यक्ति शायद बहुत बीनार था। कहते वक़्त उसके हाथ लगातार कांप रहे थे और वो खुद भी कांप रहा था।
मंडेला ने कहा, “नहीं, ऐसा नहीं है। वह उस जेल का जेलर था, जिसमे कभी मुझे क़ैद रखा गया था। जब कभी मुझे यातनाएं दी जाती थीं और में कराहते हुए पानी मांगता था तो यह मेरे ऊपर पेशाब करता था। मंडेला ने कहा, “में अब राष्ट्रपति बन गया हूँ। उसने समझा कि में भी उसके शायद ऐसा ही व्यवहार करूँगा। पर मेरा चरित्र ऐसा नहीं है। मुझे लगता है कि बदले की भावना से काम करना विनाश की और ले जाता है, वहीँ धैर्य और सहिशणुता की मानसिकता हमे विकास की और ले जाती है।

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मुंबई से बैंगलौर जा रही ट्रैन में सफर के दौरान टी टी ने सीट के नीचे छिपी लगभग तेरह-चौदह साल की एक लड़की से पूछा, “टिकट कहा है? कांपती हुई लड़की ने जवाब दिया, “नहीं है साहब,” । टी टी ने झल्ला कर कहा, “तो गाड़ी से उतरो। इतने में पीछे से आवाज़ आयी, “इसका टिकट में दे रही हूँ। यह सहयात्री उषा भट्टाचार्य की आवाज़ थी जो पेशे से प्रोफेसर थी।
उषा जी ने लड़की से पूछा, “तुम्हे कहाँ जाना है? लड़की ने सकुचाते हुए कहा, “पता नहीं मैडम। उषा जी ने उसे साहस बंधाते हुए कहा, “तो चलो मेरे साथ बैंगलोर तक, वैसे तुम्हारा नाम क्या है? लड़की ने जवाब दिया, “चित्रा,”। बैंगलोर पहुँच कर चित्रा को अपनी जान-पहचान की एक सवयंसेवी संस्था को सौंप दिया और एक अच्छे स्कूल में भी दाखिला करवा दिया। जल्द ही उषा जी का ट्रांसफर दिल्ली हो गया, जिसके कारण चित्रा से उनका संपर्क टूट गया। कभी-कभार केवल फ़ोन पर बात हो जाया करती थी । धीरे-धीरे वह भी बंद हो गयी। करीब बीस साल बाद उषा जी को लेक्चर के लिए सेन-फ्रांसिस्को,अमरीका बुलाया गया। लेक्चर के बाद जब वह होटल का बिल देने रिसेप्शन पर गई तो पता चला कि पीछे खड़े एक ख़ूबसूरत दम्पति ने बिल चुका दिया था।
उषा जी ने जिज्ञासा-पूर्वक पूछा, “तुमने मेरा बिल क्यों भरा? “मैडम! यह मुंबई से बैंगलोर तक के रेल टिकट के सामने कुछ भी नहीं है,” । यह सुन कर उषा जी ने आश्चर्यचकित होकर कहा, “अरे चित्रा ! चित्रा और कोई नहीं बल्कि Infosys Foundation की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति थीं, जो Infosys के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति की पत्नी हैं। ये लघु कथा उन्हीं की लिखी पुस्तक ‘The Day I Stopped Drinking Milk’ से ली गयी है। कभी कभी आपके द्वारा की गयी सहायता किसी का जीवन बदल सकती है। यदि जीवन में कुछ कमाना है तो पुण्य अर्जित कीजिये क्योंकि यही मार्ग है, जो स्वर्ग तक जाता है।

Compiled by Renu Aggarwal in Yog Manjiri, April-June 2021

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