भले लोग…. संतराम बजाज

बात क्रिसमस से दो दिन पहले की है| दरवाज़े पर दस्तक हुई, दरवाज़ा खोला तो देखा मेरा पड़ोसी खड़ा हुआ था|

“हाई ट्रेवर! आओ, अन्दर आओ| कैसे आना हुआ?” मैं ने पूछा|

“आपका साइड गेट बंद था, बैकयार्ड में जा नहीं सका|”

ओह! क्या तुम्हारी बिल्ली फिर आ कर कुछ गड़बड़ कर बैठी है?,” मैं ने हँसते  हुए कहा, क्योंकि अक्सर उस की बिल्ली मेरे बैकयार्ड में ‘कुछ न कुछ’ कर जाती है और वह भला आदमी माफी माँगता रहता है और बिल्ली है कि आतंकवादी की तरह अटैक करती रहती है|

“नहीं, ऐसी बात नहीं है, मैं तुम्हारा लॉन काटने आया हूँ|”

“क्या? मेरा लॉन काटने वाला एक दो दिन में आने वाला है और फिर इतना बुरा भी नहीं लग रहा |”

“मैं ने फ्रंट का तो काट भी दिया है|”

मैं ने हैरान हो कर देखा, तो वाकाई बड़ा  नीट और क्लीन लग रहा था|

“पर क्यों?”  मैंने पूछा

मैं क्योंकि अन्दर बैठा टीवी देख रहा था, मुझे उस के लॉन काटने की आवाज़ तक नहीं आई और आई भी होती, तो किसी पड़ोसी की भी हो सकती थी|

“अरे भई, यह सब करने की क्या ज़रुरत थी| तुम ने देखा है कि मेरा लॉन मो करने वाला हर महीने आता है| वह कुछ बिज़ी चल रहा था इसलिए लेट हो गया इस बार|”

“कोई बात नहीं, आप चाहें तो इसे मेरी बिल्ली की ओर से X-mas का तोहफ़ा समझ लो|” हम दोनों ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे|

और मेरे लाख मना करने पर भी उस ने बैकयार्ड का लॉन भी काट दिया, edges भी बनाए और ब्लोअर के साथ सब सफाई भी कर डाली|

मैं ने उस का धन्यवाद किया| मैं ने देखा कि वह भी बहुत खुशी महसूस कर रहा था|

ऐसे अचानक कोई भला काम कर दे जिसकी आप को उम्मीद न हो तो कितना अच्छा लगता है|

मुझे एक और क़िस्सा याद आ गया जो बहुत पुराना  है |

मुझे Ethiopia में तीन वर्ष का टीचिंग कॉन्ट्रैक्ट मिला था, वहां की सरकार की ओर से फैमली का एयर टिकेट भी|

मैं अपनी धर्मपत्नी और 10 महीने की बेटी के साथ वहां पहुंचा| Addis Ababa एरपोर्ट पर हमें लिवाने के लिए उन का एक ऑफिसर आया था और हमारे रहने का एक बहुत अच्छे होटल में प्रबंध किया गया था| और दो दिन बाद ऑफिस में आने को बोला|   

हम उसी शाम को  को घूमने के  लिए निकले, तो एक भीड़ को देखकर खड़े हो गए| बड़ा शोर हो रहा था|देखा तो दो  नौजवान लड़के आपस में झगड़ रहे थे, और मार पिटाई में दोनों खून में लतपत थे|

भीड़ में से उन्हें कोई भी छुड़ाने की कोशिश नहीं कर रहा था बल्कि उन्हें  उकसा रहे थे|

हम यह देख बहुत घबराए है और वहाँ से जल्दी जल्दी वापस होटल आ गये l सोचा, “किस जंगली देश में फँस गए हैं| यहाँ तो ख़तरा ही ख़तरा है, कोई क़ानून नहीं|”

हम दूसरे दिन सुबह होते ही भारतीय दूतावास पहुंचे| जाकर कहा कि हम वापस भारत  जाना चाहते हैं|

उन्होंने कारण पूछा और हमने पिछले दिन की बात बताई|

वह ऑफिसर, मिस्टर कुमार, अधेड़ उम्र के दिल्ली से थे, उन्होंने ने बड़े ध्यान से हमारी बातें सुनीं और हमें हौसला दिया, कहा कि ज़्यादा घबराने की बात नहीं है, पर क्या हम ने अच्छी तरह से सोचा है कि वापस कैसे जायेंगे| इस सरकार के साथ कॉन्ट्रैक्ट का क्या करेंगे|  वापस जाने के लिए पैसे हैं? और क्या भारत में लोग लड़ते झगड़ते नहीं, आदि आदि |

उन्होंने होटल जाकर सोचने की बात कही और कहा कि यदि फिर भी  वापस भारत जाने चाहें तो कल आयें,  देखेंगे |

हम कन्फ्यूज्ड हालत में होटल आ गये|

शाम को हमारे होटल  के कमरे पर  किसी ने नॉक किया  और हमने जब दरवाज़ा खोला तो हैरान रह गये| वही भारतीय दूतावास वाले  सज्जन खड़े थे| उनके साथ उनकी धर्मपत्नी और दो बच्चे| हम ने  उन्हें सत्कार के साथ अंदर बुलाया|

काफी देर तक बातें होती रहीं| उनकी धर्मपत्नी बहुत ही अच्छे स्वभाव की थीं | दूसरे दिन अपने घर  खाने पर बुलाया|

इतना स्नेह  कि जैसे हमें बड़े भाई और बड़ी बहन मिल गये|

उनकी बातें सुनकर हमें हिम्मत हुई और हमने दूसरे दिन एजुकेशन मिनिस्ट्री  में जाकर अपने  पोस्टिंग के पेपर लिए|

आप सुनकर हैरान होंगे कि हम पहले दिन ही जिस देश  से भागने वाले थे,  हम ने वहां 9 साल काम किया|

उस देश  के लोग भी इतने भले और भोले भाले,  बच्चों से बहुत प्यार करने वाले कि अभी भी उन को याद करते हैं|

कुमार साहिब  से हमारे पारिवारिक सम्बन्ध बने रहे| 

ज़िंदगी में ऐसे मौक़े आते हैं जब आपको ऐसे भले लोग मिल जाते हैं कि ऐसे लगता है कि भगवान् ने आप की सहायता के लिए  कोई फरिशता भेज दिया हो|                                                                             

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